पटना जिला ब्यूरो, बाढ़। कृषि विज्ञान केन्द्र, बाढ़, पटना द्वारा 16-22 अगस्त 2023 तक पार्थेनियम पर जागरूकता अभियान अगवानपुर, राणाबिगहा, पुराईबागी, सादिकपुर आदि गाँवों में चलाया गया। केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डाo रीता सिंह, वैज्ञानिक डाo मृणाल वर्मा एवं श्री राजीव कुमार ने विभिन्न गाँवों एवं विद्यालयों में शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को गाजर घास उन्मूलन हेतु जागरूक किया। केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान ने अपने संबोधन में बतलाया कि गाजर घास के पराग से मनुश्यों में श्वास सम्बन्धी बीमारियाँ जैसे दमा, त्वचा संबंधी बिमारियाँ होती है। उन्होंने बतलाया कि एक गाजर घास के पौधा से 25000 से भी ज्यादा बीज पैदा होता है, जिनका फैलाव दूर-दूर तक वायु द्वारा होता है। ये हानिकारक पौधे फसलों के उत्पादन को प्रभावित करने के साथ-साथ मनुषय एवं पालतू पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं।

गाजर घास मृदा में उपस्थित नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक राइजोबियम जीवाणुओं के विकास एवं विस्तार पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसके कारण दलहनी फसलों में जड़ ग्रन्थियों की संख्या 60 प्रतिशत तक घट जाती है। यह पौधा जहाँ उगता है, वहां यह पौधों की अन्य प्रजातियों को विस्थापित कर अपना एकाधिकार स्थापित कर लेता है, जिससे जैव-विविधता की क्षति होती है। भारत में गाजर घास पौधे का आगमन अमेरिका तथा मैक्सिको से आयातित गेहूँ की विभिन्न प्रजातियों के साथ हुआ था, जो सर्वप्रथम इस पौधे को 1956 में पुणे, महाराष्ट्र में देखा गया था। आज इस विदेशी मूल के पौधे ने देश के मैदानी क्षेत्रों में आतंक मचा रखा है।

केन्द्र के वैज्ञानिकों ने बतलाया कि गाजर घास घातक खरपतवार को हरी खाद के रूप में उपयोग कर इसको नियन्त्रित किया जा सकता है। इस पौधे में 1.5 से 2 प्रतिशत तक नाइट्रोजन की मात्रा होती है। गाजर घास को पुश्पित होने से पूर्व ही काटकर कृषि भूमि पर फैलाकर जुताई कर देने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। खेत में जीवांश पदार्थों की वृद्धि के साथ-साथ नाइट्रोजन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। गाजर घास के हरे पौधे का उपयोग केंचुआ खाद निर्माण हेतु भी किया जा सकता है।

By LNB-9

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