पटना बिहार का एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर है। यह बिहार राज्य की राजधानी तथा राज्य का सबसे बड़ा शहर है। पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित पटना नगर वर्षों से प्रशासनिक, शैक्षणिक पर्यटन केंद्र, धर्म ,अध्यात्म,व्यापार, ऐतिहासिक धरोहरों एवं संस्कृति का केंद्र रहा है।
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार पटना के पुराना नाम पाटलि बोथरा या पाटलि पट्टन था जो सर्वप्रथम 600 ईसवी पूर्व अस्तित्व में आया था। लोक कथाओं के अनुसार राजा पत्रक ने अपनी रानी पाटलि के लिए इस नगर का निर्माण कराया था।इसी कारण इस नगर का नाम सम्भवतः पाटली ग्राम या पाटलीपुत्र पड़ा। कुछ पुरातात्विक अनुसंधानों के अनुसार पटना के इतिहास 490 ईस्वी पूर्व से प्रारंभ होता है। समय के साथ साथ पटना के नाम भी बदलता रहा है।पटना नगर के कई परिवर्तित नाम हैं मसलन, पाटली ग्राम, पाटलीपुत्र, कुसुमपुर, अज़ीमाबाद और वर्तमान नाम पटना।
गंगा नदी के तट पर स्थित होने एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगीर से हटाकर पटना को बनाया और यहाँ अपना एक दुर्ग का निर्माण कराया। अजातशत्रु के समय से ही पटना दुनिया के अन्य गौरवशाली नगरों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक गौतमबुद्ध ने भी अपने जीवन के अंतिम दिनों में कुछ दिन पटना में व्यतीत किये थे। मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया। मौर्यकाल में जब मगध साम्राज्य की सत्ता का विस्तार बंगाल की खाड़ी से लेकर अफगानिस्तान तक था तब भी इतने बड़े साम्राज्य की राजधानी बनने का गौरव पटना को प्राप्त है।
गुप्त राजवंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक है। कई इतिहासकारों ने गुप्तवंश के काल को भारत का स्वर्ण युग का नाम दिया है। इसका मतलब ये है कि गुप्त वंश के काल में मगध साम्राज्य अपने चरम उत्कर्ष पर होगा। इस स्वर्णयुग की राजधानी भी पटना ही थी।
सम्राट अशोक के पहले पाटलिपुत्र नगर लकड़ियों से निर्मित था। सम्राट अशोक ने शिलाओं का प्रयोग कर इसकी संरचना में परिवर्तन कर दिया जिसका जीवंत चित्रण चीनी यात्री फ़ाह्यान ने अपनी यात्रा वृतांत में किया है। राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार मे आनेवाले यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र का प्रथम लिखित विवरण किया है। मगध प्रदेश पर शासन करनेवाले कई राजवंशों ने पटना को अपनी राजधानी बनाई। गुप्तवंश के पतन के बाद मगध के साथ साथ पटना भी मुगलों के आधिपत्य में आ गया। मगध की समृद्धि खतरे में पड़ गयी। मुगल शासक बख्तियार ख़िलजी ने पटना एवं नालंदा के कई शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया। विश्व विख्यात नालंदा विश्वविद्यालय को विध्वंस करने वाला बख़्तियार ख़िलजी ही था।
मुगल काल के दौरान ही पटना का एक उत्कृष्ट समय तब आया जब शेरशाह सूरी ने पटना को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
मुग़ल बादशाह अकबर अफगान शासक दाऊद खान को कुचलने पटना आया था। मुग़ल शासक औरंगजेब ने अपने पोते मुहम्मद अज़ीम जो पटना का सूबेदार था, के नाम पर ही पटना का नाम परिवर्तित कर अजीमाबाद रख दिया था।
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पटना बंगाल के नवाबों के शासनाधीन हो गया। इन नवाबों ने जनता पर तो अत्यधिक टैक्स लगा दिया लेकिन पटना को व्यापारिक केंद्र बने रहने की छूट दे दी। 17वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन गया।1764 के बक्सर के युद्ध मे बंगाल के नवाब की हार ने पटना को अंग्रेजों के अधीन कर दिया। परंतु अंग्रेजों के समय भी यह व्यापारिक केंद्र बना रहा।
1912 ई में बंगाल विभाजन के बाद बिहार एवं उड़ीसा की राजधानी पटना को ही बनाई गई। 1935 ई में जब उड़ीसा से बिहार को अलग कर स्वतंत्र राज्य बनाया गया तब भी बिहार की राजधानी बनाया गया। भारत का शायद ही ऐसा कोई नगर है जिन्हें प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक राजधानी बने रहने का गौरव प्राप्त है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी पटना नगर के अहम योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। अगस्त क्रांति के दौरान 11 अगस्त 1942 को दो बजे दिन में सचिवालय पर तिरंगा झंडा लहराते हुए देश के सात सपूतों ने अपने प्राणों की बलि दे दी। प्रबल गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी डॉक्टर अनुग्रह नारायण सिंह को पटना में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिश में गिरफ्तार कर लिया गया।
सिक्खों के दशमे गुरु गुरु गोविंद सिंह का जन्मस्थली पटना में तख्त हरमंदिर का दर्शन करने लोग देश विदेश से आते हैं। इस लहजे से पटना देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। पटना के कुम्हरार पार्क में मौर्यकालीन भग्नावशेष मौजूद है।
पटना के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में तख्त हरमंदिर साहब, हनुमान मंदिर, अगम कुंआ, पटनदेवी , पत्थर की मस्जिद,पादरी की हवेली, श्रीकृष्ण सिंह विज्ञान केंद्र, संजय गांधी जैविक उद्यान, इकोपार्क, बुद्ध स्मृति पार्क, गोल घर, पटना विश्वविद्यालय, ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी आदि मौजूद है।
पटना तथा इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष एवं खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मूक गवाह है तथा पटना की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं।