पिछले दिनों इंडिया गेट पर जलने वाली अमर जवान ज्योति को भारत सरकार द्वारा बुझा दिया गया और उसे नेशनल वार मेमोरियल में विलय कर दिया गया। सरकार द्वारा उठाये गए इस कदम पर कई रिटायर्ड सेना के अधिकारियों सहित कई लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। भाजपा नेताओं द्वारा इसके पक्ष मे तर्क यह दिया जा रहा है कि ये गुलामी की निशानी थी जिसे समाप्त कर दिया गया। यह तर्क बिल्कुल बेतुका और अशोभनीय है। भाजपा सरकार के समर्थन में वरिष्ठ पत्रकार अमीश देवगन और अंजना ओम कश्यप भी हाँ में सिर हिलाते देखे जा रहे हैं। सवाल यह है कि शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए दोनों जगह मशाले क्यों नही जलाई जा सकती?
जिन सैनिकों की कुर्बानी को सरकार समर्थक नेता गुलामी की निशानी बता रहे हैं, हम बताते हैं कि आखिर वो मशाल कब और किनकी याद में भारतीयों द्वारा मिलकर जलायी गयी थी? 26 जनवरी 1972 से इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति अनवरत प्रज्ज्वलित हो रही थी, जिसे 1971 के युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों की याद और सम्मान मे जलाया गया था। तब से लेकर वर्तमान तक वह मशाल जल रहा था। भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाला यह युद्ध 13 दिनों तक चला जो युद्ध के इतिहास में सबसे लघुतम युद्धों में से एक था। 3 दिसंबर 1971 से शुरू हुआ यह युद्ध 16 दिसंबर 1971 को समाप्त हो गया। पाकिस्तान को दो टुकड़े कर एक नया देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया। यह भारतीयों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उस समय प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गाँधी और राष्ट्रपति वी०वी० गिरि थे और जगजीवन राम भारत के रक्षामंत्री थे।
पूर्वी कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल जी०जी० बेनूर, दक्षिणी कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल के०पी० कंडेथ, पश्चिमी कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल मनोहर लाल छिब्बर तथा उत्तरी कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रेमेन्द्र सिंह भगत जबकि मध्य कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल संगत सिंह, सरताज सिंह, करण सिंह, और देपिन्दर सिंह कर रहे थे। इस युद्ध में भारत के 3000 से अधिक सैनिक शहीद हो गए थे। इन शहीदों की कुर्बानी रंग लायी और भारत विजयी हुआ। पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी। पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा बन्दी बना लिया गया था। जंग में भारत की विजय को मनाने और देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए यह ज्योति जलाई गयी थी। यह बात अलग है कि ब्रिटिश शासन के दौरान प्रथम विश्वयुद्ध में एंग्लो अफगान युद्ध में मारे गए करीब 84000 भारतीय सैनिकों की याद में इंडिया गेट बनाया गया था। उसके बाद इंडिया गेट पर ही 1971 के युद्ध में शहीद भारतीय जवानों की याद में अमर जवान ज्योति जलाई गई। सवाल इसीलिए उठाये जा रहे है कि 1971 में भारत आजाद था जब इस मशाल को जलाया गया। तब भाजपा द्वारा इसे गुलामी की निशानी बताकर भारत, भारतीयों एवं शहीदो को गाली देना ही कहा जा सकता है या फिर ये समझा जा सकता है कि इन नेताओं के पास ज्ञान की बेहद कमी है। यही कारण है कि 1971 के युद्ध में शामिल रहे सैनिकों सहित कई लोगों द्वारा भी सवाल उठाये जा रहे हैं।
इंडियन एयर फोर्स से रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल वी०के० विश्नोई जिन्होंने 1971 के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने ढाका में गवर्नर हाऊस पर बम गिराया था, एम. बी. टी. के हवाले से कहा है कि 1971 की लड़ाई का अपना एक विशेष महत्व है, हमें इसकी अहमियत को बरकरार रखने के लिए इसे अलग रखना चाहिए। इंडिया गेट अंग्रेजों ने बनाया था लेकिन अमर जवान ज्योति हम भारतीयों ने जलाई थी। अत: इस मशाल को बन्द कर शहीदों के परिवार एवं सैनिकों की भावनाओं को आहत किया गया है। इसे अलग से जलती रहनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि ऐसा करने का क्या मकसद हल हो रहा है, यह समझ से परे है। इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय है कि मशाल दोनो जगह जलती रहनी चाहिए थी। 1965 एवं 1971 दोनो युद्धों में शामिल रहे एयर वाइस मार्शल कपिल काक ने भी इसे भारतीयों सैनिकों एवं भारतीय लोगों की भावनाओं से जोड़कर देखा। उन्होंने कहा है कि नेशनल वार मेमोरियल बनाना सरकार का एक अच्छा कदम है, लेकिन इंडिया गेट पर और नेशनल वार मेमोरियल दोनों जगह की अमर जवान ज्योति जली रह सकती थी।
इस प्रकार कुछ लोगों द्वारा यह कहना कि अमर जवान ज्योति गुलामी की प्रतीक थी, यह बेहद हास्यास्पद और दुःख पहुंचाने वाला है। पिछले 50 सालों से जल रही अमर जवान ज्योति का एक अपना अलग महत्व था। जिस ज्योति को भारतीय शहीद जवानों की याद में जलाया गया था। इससे इतर नेशनल वार मेमोरियल के बनाये जाने की बात काफी अरसे से चल रही थी, जिसे बनाकर सरकार ने एक अच्छा कार्य किया है और वहां पर भी अमर जवान ज्योति जलाई गई है। इन सब के बावजूद 1971 के युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान में इंडिया गेट के पर जलाई गई, ज्योति का विशेष महत्व था। सवाल करने वाले कुछ लोग यह भी बताते हैं कि यदि इसे गुलामी का प्रतीक मानकर हटाया जा रहा है तो फिर भारत में कई ऐसे प्राचीन राष्ट्रीय धरोहर है जिसे मुगलों एवं अंग्रेजो के द्वारा बनाया गया है। क्या उसे भी मिटा दिया जाएगा? अगर ऐसा किया जाता है तो भारत एवं भारतीयों को क्या हासिल होगा?