प्रकृति द्वारा रचित विश्व के सभी देशों में सबसे सुंदर, निराला,अद्भुत प्राकृतिक छटाओं से युक्त विभिन्न ऋतुओं से भरपूर यदि किसी देश की रचना की गयी है तो वह है भारत। भारत में कुल छह ऋतुएँ हैं जो संसार में कहीं नहीं पायी जाती है। सभी ऋतुओं का अपना -अपना धार्मिक, और सामाजिक महत्व है। हर ऋतु से संबंधित कोई न कोई त्योहार है। लेकिन ऋतुओं में सबसे मादक, मनमोहक, आकर्षक और मनोरम प्राकृतिक छटाओं से नई ऊर्जा का संचरण करने वाला ऋतु वसंत ऋतु है। वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। वसंत ऋतु में माघ मास के पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला वसंत पंचमी का त्योहार अद्भुत और अनोखा है। यह त्योहार छात्रों, कवियों ,लेखको,संगीतकारों शिक्षकों नाटककारों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। वसंत पंचमी का त्योहार तब मनाया जाता है, जब वसंत ऋतु का आगमन होता है। पतझड़ का मौसम समाप्त होने वाला होता है ,पेड़ पौधों में नवजीवन का संचार होने लगता है वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते और नए कोपल प्रस्फुटित होने लगते हैं । खेतों में गेहूं की बालियां और आम के पेड़ों पर सुगंधित मंजर(बौर) आने लगते हैं। खेतों में सरसों के पीले पीले फूल खिलकर ऐसे चमकते हैं मानो सोना। प्रकृति की ऐसी अद्भुत स्वरूप और छटा निराली और मनभावन लगती है। चारों ओर का वातावरण निर्मलता से भरपूर और ख़ुशनुमा होता है।
वसंत पंचमी हिंदुओं का एक विशेष और अनोखा त्योहार है। इस दिन बुद्धि, प्रज्ञा और विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना पूरे देश में की जाती है। पुराणों में वसन्त पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहा गया है। वसंत पञ्चमी में पीले रंग के वस्त्रों के परिधान का विशेष महत्व है।वसंत ऋतु में फूलों पर बहार आ जाती है। तरह तरह के फूलों खिलने लगते है। हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराने लगते हैं भौरें मधुर गान करने लगते हैं। कहा जाता है कि ऋतुराज वसंत के स्वागत में माघ मास के पांचवें दिन वसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। पुराणों, तथा अनेक काव्यग्रंथों में वसंत अलग अलग ढंग से चित्रण किया गया है। कई कवियों और लेखकों ने वसंत ऋतु और वसंत पञ्चमी को अपनी रचनाओं में विशेष महत्व दिया है। इन साहित्यकारों में नागार्जुन, निराला जी, सुमित्रानंदन पंत, और केदारनाथ अग्रवाल प्रमुख हैं। वसंत पञ्चमी का विशेष धार्मिक महत्व है। उपनिषदों के अनुसार भगवान ब्रह्माऔर विष्णु के आग्रह पर आदि शक्ति देवी दुर्गा ने अपने तेज से देवी सरस्वती को प्रकट किया । चतुर्भुजी श्वेत वस्त्र धारण किए हुए देवी सरस्वती का प्रकृति करण होते ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिससे संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई जल धाराओं में सरगम व्याप्त हो गया। पवनों से तरह-तरह की ध्वनियां निकलने लगी। जिस दिन माता सरस्वती का अवतरण हुआ उस दिन वसंत पंचमी का दिन था। तभी से वसंत पंचमी को मां सरस्वती के धरा अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
देवी सरस्वती को वीणा वादिनी भगवती शारदा वागीश्वरी वाग्देवी आदि कई नामों से जाना जाता है। उपासक इनकी प्रत्येक नामों की पूजा करते हैं। छात्र-छात्राओं द्वारा विद्यालय और कोचिंग में भगवती सरस्वती की आराधना बड़े ही धूमधाम से करते हैं ।ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है
प्रणों देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनिवती धीनामणि त्रय वतु।
अर्थात यह परम चेतना है सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा, तथा मनोवृतियों की संरक्षिका हैं। हमारे अंदर जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। माँ सरस्वती की समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत और निराली है। वसंत पञ्चमी में मां की आराधना के साथ ही रंग और गुलाल लगाने की शुरुआत हो जाती है । होलिकोत्सव वसंत के द्वार पर दस्तक देते प्रतीत होते हैं। गीत संगीत से चारों ओर का वातावरण गुंजायमान होने लगता है।
वसंत पञ्चमी का त्यौहार मनाते ही प्रकृति का कण कण खिल उठता है । मानव तो मानव पशु पक्षी, पेड़ पौधे तक उल्लास, और जोश से भर जाते हैं। हर दिन सूर्योदय के साथ नई चेतना का संचार होने लगता है। भगवती सरस्वती की पूजा कर शिक्षाविद और ज्ञानवान होने की प्रार्थना करता है। शिक्षक ,कवि,कलाकार नाटककार ,लेखक, छात्र सभी अपने अपने उपकरणों की पूजा माँ शारदे की वंदना से करते हैं। विद्या आरम्भ के लिए वसन्त पञ्चमी का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। विद्या आरम्भ का मंत्र है-
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी
विद्यारम्भम करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।
इस प्रकार कई कारणों से वसंत पंचमी का त्यौहार अनोखा और अद्भुत है।