भारत का वह स्थान जहाँ आज भी आस्था पर अंधविश्वास भारी है। एक तरफ हम विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का स्वप्न संजोए बैठे हैं , जहाँ आज भी शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर भारत में आज भी एक ऐसा वर्ग कायम है जो झाड़- फूँक, भूत-प्रेत में विश्वास करता है। कई ऐसे परिवार हैं जो झाड़-फूँक और भूत-प्रेत के चक्कर में पड़कर हजारों रुपये बर्बाद कर देते हैं और खुद को जीवन भर परेशानी के जंजाल में डाल लेते हैं और नतीजे के तौर पर इन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता। भूत खेली और झाड़-फूंक जबरदस्त नज़ारा देखना हो तो बाढ़ जाइये। माघी पूर्णिमा के अवसर पर बाढ़ के गंगा घाटों पर स्नान करने के बाद शुरू होता है झाड़ फूँक और भूत खेली का खेल। ढाक-ढोल और मन्दरे की थाप पर झूमते- नाचते भगतों और भगतिनियों का झुंड देखकर आपको लगेगा कि हम एक अलग भारत में पहुँच गए हैं। ये भगत मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित लोगों को ठीक कर देने का दावा करते हैं। बाढ़ में यों तो कई लोग इस अवसर पर गंगा स्नान कर पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं लेकिन इनकी संख्या कम होती है। परंतु आधे से अधिक संख्या उन ग्रामीणों की होती है जो इस अवसर पर झाड़ फूंक करके अपनी समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं। भगत खेली के कार्य में ज्यादातर महिलाएं होती है। हालांकि पुरुष भगत भी होते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह देखने को मिलती है कि कम उम्र के किशोर और किशोरियां भी भगतिनि बनकर नाचते झूमते देखे जाते हैं। आखिर अंधविश्वास का कारण क्या है? इसे जानना बेहद जरूरी है। क्योंकि विदेशों में जिस उम्र में लोग अपने कैरियर बनाने की दिशा में अग्रसर रहते हैं उस उम्र में यहाँ भगत खेली की जाल में फँसकर अपना भविष्य भी दाँव पर लगा रहे हैं। इस प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण है शिक्षा का घोर अभाव। आज भी बिहार में NSO के अनुसार साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से 6.8% कम है जबकि जनगणना 2011 के अनुसार बिहार में साक्षरता दर 63 .82% है। इस आंकड़े में उनकी संख्या भी शामिल है, जो सिर्फ अपना नाम लिखना जानते है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फ़ॉर एजुकेशन (यू-डाइस) से मिले वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़ों के विश्लेषण में यह खुलासा हुआ है कि दसवीं से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों में बिहार सबसे आगे है। सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 17 साल की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं। इन सब कारणों से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को वास्तविक शिक्षा नही मिल पाती है और ज्ञान के अभाव में अंधविश्वास की भ्रमजाल में फंस जाते हैं। जागरूकता की कमी भी अंधविश्वास को बढ़ावा देता है। भारत मे ग्रामीण क्षेत्रों में कई मामलों में जागरूकता की भारी कमी देखी जाती है। शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी व्याप्त होने से लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में विश्वास नही रखते। उन्हें लगता है कि पढ़ाई लिखाई करने से कुछ नही होता है। उनका ऐसा सोचना शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी को दर्शाता है। अंधविश्वास को बढ़ावा देने में परंपरा और परिवेश का भी महत्वपूर्ण हाथ है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई घर ऐसे होतें है जहां भगतखेली और भूत-प्रेत के अस्तित्व में विश्वास को लेकर एक परंपरा चली आ रही होती है। उस परंपरा और परिवेश से आस-पास के लोग भी प्रभावित होते हैं और अंधविश्वास के भ्रमजाल में फंस जाते है। अंधविश्वास का एक प्रमुख कारण व्यक्ति का डर और स्वार्थ के होना भी है, जिसकी वजह से वह अंधविश्वास की ओर जाने से खुद को रोक नही पाता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को यह कह दिया जाए कि आज इस कार्य को करने का अच्छा दिन नही है, आज इस कार्य को करने आए बुरा या अनिष्ट हो जाएगा। तो व्यक्ति दर जाता है और चाहते हुए भी उस कार्य को नही कर पाता है। इसी प्रकार स्वार्थ के कारण भी लोग अंधविश्वास के गड्ढे में कूद जाते है। जैसे यदि कोई कह दे कि ये करने से घर मे धन की वर्षा होगी और आपके घर मे खुशियां आएगी और आपके बच्चों को नौकरी लग जाएगी, तो व्यक्ति अंधविश्वासी कार्य को करने लगता है।
हालांकि भारत में अंधविश्वास की कुछ ऐसी प्रथायें पहले से प्रचलित थी, जो एक सभ्य समाज के अस्तित्व को समाप्त कर देता। जैसे- मानव बलि, सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि, लेकिन विकास और विचारों में परिवर्तन के साथ-साथ सामाजिक क्रांति के जनकों के प्रयासों द्वारा अंधविश्वास की स्थिति को काफी कर दिया गया था, लेकिन पुनः 21वीं सदी के भारत मे यह धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। भारत मे कई लोगों की असफलता का कारण भी अंधविश्वास ही होता है, जिसमें भी वह मान लेते हैं कि अंधविश्वास की मान्यताओं को न मानने से वह सफल नही हो पा रहे हैं। सभी प्रकार के अंधविश्वासों की जड़ में तर्कहीन विश्वास होता है, जो ज्यादातर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान, कमजोर मानसिकता वाले एवं अशिक्षित लोगों में देखने को मिलता है।
सचमुच यह भारतीय समाज के लिए एक चिंता का विषय है कि 21वीं सदी में जहां दुनिया नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है वहीं 21वीं सदी के भारत में आज भी अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियां व्याप्त है। अंधविश्वास से भारतीय शिक्षित समाज को एक लड़ाई लड़नी होगी। समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना होगा, केवल साक्षरता से काम नही चलेगा। इसी प्रकार का अंधविश्वास बाबाओं के द्वारा भी फैलाया जा रहा है। कई प्रकार के ढोंगी बाबा भगवा वस्त्र पहनकर पढ़े-लिखें लोगों को भी अपने जाल में फंसाकर अपनी दुकान चला रहे है। जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही होता है, वैसी बातों के प्रति आम लोगों को भी अपने भ्रमजाल में लाकर उनकी कृपा से घर में सुख-शांति एवं दुर्गति दूर करने के नाम पर लाखों रुपये की ठगी करते रहते हैं। इस प्रकार के बाबाओं पर सरकार के द्वारा एक विशेष जांच टीम गठित कर कार्रवाई की जानी चाहिए। आये दिन अक्सर ऐसे ढोंगी बाबाओं का पर्दा-फाश होता रहता हैं। समझदार लोगों को अंधविश्वासों से और ढोंगी बाबाओं से बचने की कोशिश करनी चाहिए।

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