विश्व के लोकतान्त्रिक देशो की सूची मे भारत के लोकतन्त्र का स्थान शीर्ष पर है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था विश्व के दूसरे देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था की तुलना में बिल्कुल जुदा है। यह व्यवस्था भारत के सम्मानित बुद्धिजीवी रत्नों के महत्वपूर्ण योगदान से कायम हुई है। भारतीय लोकतन्त्र को मजबूत और यहाँ की परिस्थितियों के अनुकूल और कारगर बनाने के लिए ही भारतीय संविधान में विभिन्न देशों के संविधान से कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को शामिल कर लिया गया है। इस संविधान की सबसे बड़ी खूबसूरती इसकी लोचदार व्यवस्था है। जब कभी संविधान मे सुधार की आवश्यकता महसूस की जाती है, तो प्रक्रिया के तहत उसमे संशोधन कर नियमों मे बदलाव किया जा सकता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है क्योंकि लोकतन्त्र के मूल उद्देश्यों को संविधान की प्रस्तावना मे ही समाविष्ट कर दिया गया है। प्रस्तावना संविधान के भूमिका या परिचय को कहते है जो नेहरू जी के ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है। संविधान मे प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से ली गयी है। प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ से है। दुनिया के दस प्रसिद्ध देशों से लिया गया ये संविधान दुनिया के सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मूल संविधान मे कूल 1,45,000 शब्द समाविष्ट है। जिन देशों के संविधान की मूल नियमों को हमारे संविधान में अपनाया गया है, वे है अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, सोवियत संघ, जापान और फ्रांस। संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष डॉ0 भीमराव अंबेडकर ने दुनिया के संविधान को लिखा। आइये जानते है कि भारतीय संविधान का मूल प्रस्तावना को ही संविधान की आत्मा कहते क्यों है? 

प्रस्तावना में वर्णित ‘हम भारत के लोग’ का तात्पर्य यह है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च या संप्रभु है, अतः भारतीय जनता को जो अधिकार मिले है वही संविधान का आधार है। कहने का मतलब भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है। 

संप्रभुता का आशय यह है कि भारत न तो किसी अन्य देश पर निर्भर है ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है। इसके ऊपर कोई शक्ति नहीं है। यही सर्वोच्च है। अपने आंतरिक और बाहरी मामलों के निस्तारण के लिए सक्षम और स्वतंत्र है। 

प्रस्तावना मे समाजवादी शब्द का आशय है कि उत्पादन के मुख्य साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व तथा नियंत्रण हो एवं वितरण मे समरसता हो। 

पंथनिरपेक्ष का मतलब यह है कि हमारे देश में सभी धर्म समान है तथा उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है। हालांकि संविधान निर्माता एक ऐसे ही राज्य की स्थापना करना चाहते थे अपने पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएं विद्यमान हो। 

संविधान की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का बड़ा ही विस्तृत और व्यापक अर्थ है। इसमें लोकतंत्र के अतिरिक्त सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। व्यस्क मताधिकार, सामाजिक चुनाव, कानून की सर्वोच्चता एवं न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारतीय राज्य व्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण के प्रमुख स्वरूप है। 

प्रस्तावना में गणराज्य शब्द का उपयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि वंशागत गणतंत्र को छोड़कर लोकतंत्रीय गणतंत्र को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है।

प्रस्तावना में वर्णित स्वतंत्रता शब्द का तात्पर्य नागरिक स्वतंत्रता से है। स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग संविधान में वर्णन किए गए सीमाओं के अंदर ही किया जा सकता है। यह सभी व्यक्तियों के विकास के लिए अवसर प्रदान करता है। 

भारतीय संविधान की आत्मा में वर्णित न्याय शब्द को सामाजिक न्याय आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय आदि तीन रूपों में देखा जा सकता है। एक और जहां सामाजिक न्याय मानव मानव के बीच जाति वर्ण के आधार पर भेदभाव करने से मना करता है दूसरी और आर्थिक न्याय के अंतर्गत उत्पादन एवं साधनों का वितरण न्यायोच्चित होना चाहिए ना कि देश की धन-संपदा की बागडोर कुछ हाथों में केंद्रित हो जाए। उसी प्रकार राजनीतिक न्याय के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को सभी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो।

संविधान की प्रस्तावना में वर्णित शब्द समता का आशय है कि हर नागरिक को देश के अंदर अवसर की समानता हो। समाज के किसी वर्ग विशेष के लिए विशेषाधिकार ना हो तथा बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक लोग अवसर का लाभ उठा सकें। 

प्रस्तावना के अनुसार बंधुत्व शब्द दो बातों को सुनिश्चित करता है। पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता। हालांकि बंधुत्व का सामान्य अर्थ होता है ‘भाईचारे की भावना’।

इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उन सभी तथ्यों का वर्णन है जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए होता है। प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया है। अतः संविधान में व्यक्ति की गरिमा के साथ साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली सभी बातें प्रकट होती है और यही कारण है कि प्रस्तावना को भारतीय संविधान की आत्मा कहा जाता है।

By LNB-9

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