माघ मास के पुर्णिमा तिथि को माघी पुर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण होता है तथा पवित्र नदियों में एक नयी प्रकार की ऊर्जा व्याप्त हो जाता है तथा स्नान करने वालों का शारीरिक और मानसिक रूप से विकास होता है। सकारात्मक सोच और सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत चारों ओर प्रवाहित होते रहते है जिसका लाभ माघी पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों मे स्नान करने वालें श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है। माघी पूर्णिमा को लेकर मान्यता है कि इस दिन स्नान करके दान करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाए पूर्ण होती है। 

हिन्दू सनातन धर्म में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से माघ मास को विशेष दर्जा प्राप्त है। भारतीय संवत्सर का 11वां चन्द्रमास और 10वां सौर्यमास माघ कहलाता है। मग्घा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम माघ पड़ा। सभी महीनो में माघ महीना को सर्वशक्तिशाली, ऊर्जावान और प्रभावशाली माना गया है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी इस महीने को उत्तम माना गया है। हर्षोल्लास के साथ ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का त्योहार वसंत पंचमी इसी मास में मनाए जाते है।

कहा जाता है कि माघी पुर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण अवस्था में 16 कलाओं से शोभायमान होते है और अमृत की वर्षा करते है जिनके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पति पर पड़ते है जिसके कारण नदियों, तालाबों एवं जलाशयों में आरोग्यदायक गुण उत्पन्न हो जाते है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते है अतः इस दिन गंगाजल के स्पर्श मात्र से ही व्यक्ति को मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस पावन समय में स्नान करने से भक्त को सभी ग्रह-नक्षत्रों आदि सभी प्रकार के कोप से भी मुक्ति मिलती है। यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन क्षीर सागर में विराजमान होते है। गंगा के रूप को ही क्षीर सागर कहा गया है।

भारतवर्ष में कई धार्मिक स्थलों पर माघ माह में प्रतिवर्ष मेले का आयोजन होता है। प्रयाग में लाखों की संख्या मे भक्त गंगा-यमुना के संगम स्थल पर पूरे 30 दिनों तक कल्पवास करते है। ऐसी मान्यता है कि इस माह में जरूरतमंदों को ठंड से बचने के लिए गरम कपड़े, कंबल, लकड़ी एवं अग्नि प्रज्वलित करने वाली अन्य वस्तुओं को दान करने से विशेष फल कि प्राप्ति होती है। हालांकि माघ मास की प्रत्येक तिथि पवित्र होती है, फिर भी पुर्णिमा की तिथि का अपना विशेष महत्व है। इस अवसर पर महाकुंभ मे स्नान करने वालें श्रद्धालु भक्तों को मोक्ष कि प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता यह है कि माघ पुर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चंद्रमा से युक्त दोषों से मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति साटविकता को प्राप्त करते है। इस दिन मकर राशि में सूर्य का प्रवेश तथा कर्क राशि में चंद्रमा का प्रवेश होने से माघ पूर्णिमा का स्नान अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन सूर्योदय होने से जल में ऊर्जा और भगवान भास्कर का तेज़ समाहित हो जाता है जो पापों का समन करता है। निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी मे स्नान करना चाहिए। अतः यही कारण है कि माघ पुर्णिमा के दिन लाखों कि संख्या मे श्रद्धालु आते है और गंगा नदी में स्नान करते है। इससे व्यक्ति स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बन जाता है। साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरने पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती है। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है। माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टकोण से भी महत्वपूर्ण है। चुकि माघ मास में जाड़े की ऋतु समाप्त होने की ओर अग्रसर रहती है और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। अतः ऋतु के बदलाव का स्वस्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और शरीर को मजबूती मिले इसलिए प्रतिदिन माघ महीने के स्नान का विधान है। 

ब्रह्म बैवर्त पुराण में यह उल्लेख है कि माघी पुर्णिमा में भगवान विष्णु चुकि गंगाजल में निवास करते है इसलिए गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। प्राचीन ग्रंथो में नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पुर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है। भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्र मुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिसप्त इंद्र भी माघ पुर्णिमा के स्नान से श्राप से मुक्त हुए थे। मत्स्य पुराण के अनुसार- 

पुराणं ब्रह्म वैवर्तं यो दद्यान्माघर्मासि  च,

पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।

मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास के पुर्णिमा के दिन जो व्यक्ति स्नान कर ब्राह्मण को दान करता है उसे ब्रह्मलोक कि प्राप्ति होती है। माघी पुर्णिमा का स्नान बहुत ही पवित्र माना जाता है इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है। स्नान आदि से निर्वित होकर भगवान विष्णु की पुजा गरीबों को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डू,फल तथा अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। इस विशेष महत्व के कारण ही कई धार्मिक स्थलों जैसे प्रयाग, बाढ़, बनारस, अयोध्या में पवित्र नदियों मे स्नान करने हेतु लाखो कि संख्या में श्रद्धालु पहुँचते है। 

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