भारत वह भूमि रही है जहां सदियों तक शिक्षकों को सम्मान मिलता रहा। किसी भी राजा के दरबार में गुरु का स्थान सर्वोपरि होता था क्योंकि गुरु अर्थात शिक्षक विज्ञान के वह श्रोत होते हैं जिनकी ज्ञान की प्रकाश से दुनिया आलोकित होती रही है। जिनकी ज्ञान की बदौलत दुनिया ने आज इतनी तरक्की कर ली है। शिक्षकों को राष्ट्र के भविष्य का निर्माता कहा जाता है क्योंकि वह लोगों के भविष्य को संवारते हैं। लोगों से देश का भविष्य सुधरता है लेकिन विडंबना देखिए कि राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों का भविष्य सवारने वाले शिक्षक आज खुद अपना भविष्य तलाश रहें हैं। शिक्षक प्राइवेट स्कूल का हो या सरकारी स्कूल का, शिक्षक ही होता है। प्राचीन काल में जनसंख्या कम थी और शिक्षा ग्रहण करने वालों की संख्या सीमित थी, इसीलिए गुरुकुल हुआ करते थे और राजा-महाराजा के बेटे गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे। गुरुकुल भी एक प्रकार से प्राइवेट विद्यालय का ही रूप था। जनसंख्या वृद्धि और देश-दुनिया में सभ्यता के विकास एवं चांद और अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व कायम करने की होड़ और अत्याधुनिक दिखने की ललक ने गुरुकुल का रूप बदल दिया और उसका स्थान प्राइवेट स्कूल ने ले लिया। अगर कोई व्यक्ति एक स्कूल खोल कर समाज के बच्चों को शिक्षा दान कर रहा और उसके बदले अपने परिवार का भरण-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के लिए फीस लेता है तो इसमें कोई बुराई नहीं झलकती। प्राइवेट शिक्षक कम से कम सरकार पर तो आर्थिक बोझ का कारण नहीं बनता। आत्मनिर्भरता की आज बात की जा रही है प्राइवेट शिक्षक सालों से उसका पालन कर रहे हैं। लेकिन आत्मनिर्भर भारत का नारा सिर्फ नारा बनकर रह गया। आत्मनिर्भर निजी विद्यालय के शिक्षकों की आत्मनिर्भरता नष्ट की जा रही है। जरा सोचिए लॉकडाउन की स्थिति में भी व्यवसाई की दुकान को अल्टरनेट खोलने की व्यवस्था सरकार के द्वारा दिए जाने के बाद भी वह रो रहा है और उसके व्यवसाय को बंद नहीं किया गया है। वहीं निजी विद्यालय को लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह से बंद कर दिया गया। सरकार द्वारा लिया गया इस निर्णय से प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की हालत क्या हो जाती है, इसका अंदाजा शायद ही सरकार को समझ में आ रहा है। आज निजी विद्यालय के शिक्षक तरबूज बेचकर, मजदूरी कर अपने परिवार का जैसे-तैसे पोषण कर रहे हैं। कई शिक्षक तो काम नहीं मिलने के कारण दूसरे राज्यों में काम की तलाश में पलायन करने की सोच रहे हैं। लॉकडाउन में प्राइवेट स्कूलों के बंद होने से शिक्षकों को मिलने वाला वेतन बंद, कोचिंग भी बंद, तो आमदनी बिल्कुल बंद हो गया। अब शिक्षकों को अपने परिवार के भविष्य की चिंता सता रही है। मसलन बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य, बेटी की शादी, घर मकान बनाने की जिम्मेवारी आदि कई परेशानियां एकाएक खड़ी होने से निजी विद्यालय के शिक्षक और मानसिक तनाव के शिकार हो रहे हैं। मानसिक तनाव का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ना तय है। अगर ऐसे निजी विद्यालय के शिक्षकों की इन वजहों से मृत्यु हो जाती है तो उसमें परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी कौन लेगा? निजी विद्यालय के शिक्षकों के लिए सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई है। क्या प्राइवेट स्कूल के शिक्षक राज्य या देश के नागरिक नहीं है? सरकार यदि चाहती तो अल्टरनेटिव क्लासेज के माध्यम से शिक्षा जगत को जिंदा रख सकती थी जैसे व्यापार को जिंदा रखे हुए हैं। यह दु:खद है कि देश के नौनिहालों का भविष्य संभालने और बनाने वाले शिक्षक आज स्वयं अपना भविष्य तलाश रहे हैं। क्या निजी विद्यालय के शिक्षकों की बदहाल स्थिति पर हमारी सरकार का कलेजा पसीजेगा?