कभी कभी सरकार के द्वारा कुछ ऐसी घोषणाएं की जाती है या कदम उठाये जाते है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नही होता। कोविड के बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार के द्वारा जो आदेश निर्गत किये गए है, उसमे व्यवहारिकता का अभाव झलकता है। आप सोच सकते है कि पूस की जाड़े की कंपकपाती ठंड में रात्रि के 10 बजे से सुबह के 5 बजे तक घर से बाहर कौन निकलता है और इतिहास में कभी भी रात के 10 बजे से 5 बजे सुबह तक कहाँ पर भीड़ होती है? इसलिए नाईट कर्फ्यू का न तो कोई वास्तविकता है न कोई तर्कशीलता। जिस समय में जहां कर्फ्यू लगनी चाहिए थी, वहां की स्थिति बिल्कुल सामान्य है, जैसे- 50℅ क्षमता के साथ किसी कार्यक्रम को करने का आदेश। अब मान लीजिए किसी हॉल में 1000 कुर्सियां है। अगर 50% क्षमता के साथ कोई व्यक्ति जिलाधिकारी से आदेश लेकर कार्यक्रम करता है तो उसमें 500 लोग तो आ ही जायेंगे। तो क्या वहां कोरोना का खतरा उत्पन्न नही होगा? बाजार में लोगों को आने जाने वाले की संख्या उतनी ही रहेगी, तो उसका मापदंड क्या होगा? बाजार की जनसंख्या कैसे कम की जाये? ऐसे में खतरा तो बरकरार ही रहेगा।
दूसरी तरफ जिस आवश्यक आवश्यकता और समाज के नौनिहालों के भविष्य को जिस स्थान पर गढ़ा जाता है, उस शैक्षणिक क्षेत्र को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। हालांकि 50% क्षमता के साथ शैक्षणिक संस्थानों को खोलने की इजाजत देनी चाहिए थी। यह विडंबना है, कि 52 सीट वाले बस को बिठाकर 26 लोगों को ले जाने की इजाजत है, लेकिन स्थानीय स्कूल के बच्चे, अगर एक क्लास में 30 बच्चे है तो 15 बच्चों को लेकर पढाने की इजाजत नही है। इससे शैक्षणिक क्षेत्र की कमर, आर्थिक और शैक्षणिक, दोनो तरह से टूट रही है। खतरा हर तरफ से बरकरार है। कोविड का खतरा तो हम झेल लेंगे, लेकिन आर्थिक विकलांगता को समाज के वर्गों द्वारा झेलना बड़ा मुश्किल कार्य है। मंत्रियों के द्वारा आयोजित कार्यक्रम, ये सब जारी रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी और यूपी में चुनाव के दरम्यान रैली का होना, क्या यह साबित नही करता है कि उन्हें देश के लोगों की चिंता नही हैं? उन्हें सिर्फ अपनी कुर्सी और सत्ता की चिंता सता रही है। भारत में कोरोना की तीसरी लहर का प्रथम केस क्या योगी-मोदी की फ़िरोज़पुर रैली के बाद सामने आया था? फिर भी रैली पर रैली की जा रही है। ट्रेनें चल रही है। एक स्टेट से दूसरे स्टेट में लोग आ-जा रहें है। क्या ऐसे रुकेगा कोरोना? सरकार को कोविड नियमों का अनुपालन कराने का आदेश जारी कर 50% उपस्थिति के साथ बच्चों के स्कूल को भी खोलने की इजाजत दे देनी चाहिए थी, ताकि समाज के एक वर्ग का अस्तित्व को समाप्त होने से रोका जा सके। प्राथमिक शिक्षा को क्या सरकार अतिआवश्यक नहीं मानती? अभी कुछ दिन ही हुए जब बच्चों की शिक्षा धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी थी लेकिन एक बार फिर सरकार के द्वारा प्राथमिक शिक्षा की अनदेखी की जा रही है। यह विडंबना है कि नर्सरी से आठवीं तक कि शिक्षा को ऑन लाइन पढ़ाई कराने की बात की जाती है जबकि हकीकत ये है किअधिकांश जनसंख्या के लिए ऐसा संभव ही नहीं है। साधारण परिवार और गरीब परिवार के बच्चे जो सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं या जो स्थानीय निजी विद्यालय में कम फी देकर शिक्षा ग्रहण करते हैं उसका क्या होगा? बिना नेट पैक भराये कोई ऑनलाइन शिक्षा कैसे प्राप्त कर सकता है। नेट डेटा पैक अब और महंगा कर दिया गया है। इसलिए सरकार को एक बार फिर से प्राथमिक शिक्षा को ध्यान में रखते हुए मंथन करने की जरूरत है।