बाढ़। संस्कृति एवं थिएटर की गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली द्वापरयुगी पुण्यार्क नगरी में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के सौजन्य से एक वृहद सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसका विषय था – ‘समय के साथ थिएटर में तकनीकी बदलाव के अलावा आये अन्य बदलाव’। इस सेमिनार का आयोजन पुण्यार्क भवन में किया गया। इस सेमिनार-सह-संगोष्ठी कार्यक्रम का उद्घाटन पश्चिमी पंडारक की सरपंच श्रीमती सुनैना सिंह, मध्य प्रदेश राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संस्थापक निदेशक श्री संजय उपाध्याय ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित करके किया। इसके साथ ही कला संस्कृति केंद्रित इस संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर ख्याति लब्ध रंग कर्मियों, रंग चिंतको, संपादकों और आलोचक गांव के लेखों से संगठित पत्रिका पुण्यार्क का विमोचन निदेशक संजय उपाध्याय के कर-कमलों द्वारा किया गया। पुण्यार्क कलानिकेतन के संरक्षक आनंद मोहन प्रसाद सिंह, अध्यक्ष राम नरेश सिंह और स्थानीय कलाकारों ने आए हुए सभी अतिथियों को फूल का गुलदस्ता, स्मृति चिन्ह एवं अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि संजय उपाध्याय, सुमन कुमार रंगकर्मी पटना, सुमन प्रियदर्शी, विजय आनंद, भारत भूषण पाठक, ब्रजेश पाठक, आदि वरिष्ठ रंगकर्मियों ने वक्ता के रूप में थिएटर के भावी आयामों को लेकर मंथन एवं चिंतन किया। संचालक रंगकर्मी हेमंत कुमार ने सभी वक्ताओं को बारी-बारी से अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया। उसके बाद सभी स्थानीय कलाकारों एवं रंग कर्मियों ने ढोल-नगाड़ों के साथ अपनी लोक-संस्कृति से युक्त वेशभूषा में झांकियां निकाली और पूरे पंडारक का भ्रमण किया। इस रंग जुलूस की अगुवाई पुण्यार्क कलानिकेतन पंडारक के निर्देशक विजय आनंद कर रहे थे। पुण्यार्क भवन में इस रंग जुलूस का समापन हुआ जिसे लोगों ने बहुत सराहा। संगोष्ठी में सिनेमा, टीवी, मोबाइल, यूट्यूब जैसे तकनीकी डिजिटल क्रांति के युग में रंगमंच को प्रभावशाली बनाने और मनोरंजन के मुख्यधारा में लाने की चुनौती के तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई। इस आयोजन में पुण्यार्क कलानिकेतन पंडारक के स्थानीय रंग कर्मियों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, बिहार के जाने-माने रंगकर्मी ने बड़े ही शिद्दत से शिरकत की। कई लोगों ने उपरोक्त विषय पर अपने-अपने विचार रखे एवं विस्तृत चर्चा की। विदित हो कि पंडारक में शताब्दी पूर्व से नाट्य परंपरा चली आ रही है, जो अब यहां की संस्कृति का अहम हिस्सा बन गयी है।