बाढ़। बिहार में धीरे-धीरे चैता संस्कृति का विलोपन होता जा रहा है। दो दशक पहले जब चैत्र माह में खेतों में फसलें पककर तैयार हो जाती थी और किसान जब उसे कटनी करके घर ले जाते थे, उसकी दमाही करते हुए खुश होते थे और तब हर रोज गांव के किसी दलान पर लोग अपनी भाषा में एक प्रकार के गीतों को ढोल-मंजीरा-झाल के साथ गाया करते थे, जिसे चैता कहा जाता है। चैता बिहार की संस्कृति का अभिन्न अंग है। लेकिन आज भाग-दौड़ की जिंदगी में बिहार की यह संस्कृति लुप्त होती जा रही है। इस संस्कृति को अछुण रखने तथा फिर से वापस चैता को सम्मान दिलाने की दिशा में अखिल भारतीय नवयुवक संघ के डब्ल्यू कुमार गंधर्व ने चैता महोत्सव की शुरुआत करके एक सार्थक प्रयास किया है।

बाढ़ की पावन धरती से चैता महोत्सव के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि चैता बिहार की पुरानी संस्कृति है, जिसे बनाए रखने की जरूरत है। बाढ के अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज के मैदान में इसी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय नवयुवक संघ द्वारा चैता महोत्सव का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर बाढ के कई जाने-माने लोगों ने शिरकत की। कार्यक्रम का उद्घाटन बाढ़ नगर परिषद के चेयरमैन राजीव कुमार ‘चुन्ना’, राजद नेत्री नमिता नीरज सिंह, अखिल भारतीय नवयुवक संघ के अध्यक्ष नीलमणि सिंह ‘कुंदन’, सेना के पूर्व अधिकारी नीरज सिंह तथा उमेश साह ने संयुक्त रूप से किया। चैता महोत्सव को लेकर नमिता नीरज सिंह ने आयोजन समिति को बधाई एवं शुभकामनाएं दी तथा इस प्रकार के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की बात कही।

वहीं नगर परिषद् के अध्यक्ष राजीव कुमार चुन्ना ने चैता महोत्सव की शुरुआत को काफी सराहा तथा आने वाले समय में बाढ़ में माघी पूर्णिमा के अवसर पर उमानाथ महोत्सव के आयोजन तथा माघी पूर्णिमा के मेले को राजकीय मेले का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस दिशा में हम प्रयास जारी रखेंगे। चैता महोत्सव कार्यक्रम में पटना से आए धीरज धड़कन ओझा, गायक सोनू तथा बाढ़ की धरती से पनपे दूसरे राज्यों में तथा विदेशों में अपनी गायिका का जलवा बिखेरने वाले मसूरी लाल यादव आदि कलाकारों ने चैता गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं लोक नृत्यांगना पूजा एवं रिया ने चैतावर गीतों पर ठुमके लगाकर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।

By LNB-9

error: Content is protected !!