बिहारियों की संस्कृति बन चुका लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाला छठ व्रत का आज दूसरा दिन है। इस दिन व्रतियों द्वारा संध्याकाल में खरना पूजा किया जाता है। खरना पूजा के समय भगवान भास्कर एवं षष्टी देवी को लगाए जाने वाले भोग के प्रसाद के लिए गंगाजल की आवश्यकता होती है। इस दिन छठव्रती गंगा में स्नान कर निर्जला उपवास रखते हैं और खरना पूजा के बाद भोग का प्रसाद ग्रहण करते है। इस बाबत गंगा के विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है, जहां से पवित्र पीतल या ताँबा इत्यादि के बर्तन में गंगा के पवित्र जल को भरकर अपने अपने घरों को ले जाते हैं। मान्यता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी और यह व्रत सबसे पहले बिहार के अंगप्रदेश के महाराजा कर्ण ने शुरू की थी। सूर्यपुत्र कर्ण घंटों कमर भर पानी में खड़े रहकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया करते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वो एक महान योद्धा के रूप प्रसिद्ध हुए। एक मान्यता यह है कि जब पांडव अपना राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था जिससे उनका राजपाट पुनः वापस मिल गया। सूर्य की आराधना का एक और ही बड़ा दिलचस्प एवं पौराणिक उदाहरण दिए जाते है। पैराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र सांब ने नारद मुनि को अपमानित किया था, जिससे क्रुद्ध अपने पौत्र सांब को शाप दे दिया था और वे कुष्ठरोगी हो गए थे। कहा जाता है कि कुष्ट रोग से मुक्ति के लिए उन्होंने 12 वर्षों तक सूर्य की तपस्या की थी। सूर्यदेव की कृपा से उनका कुष्ठरोग ठीक हो गया था। कहा जाता है कि ठीक होने के पश्चात राजा सांब ने भारत में तीन जगहों पर भगवान सूर्य के तीन मंदिरों का निर्माण कराया,जिसमें एक मंदिर मुल्तान जो कि अब पाकिस्तान में है, दूसरा मंदिर कोणार्क में तथा तीसरा मंदिर बाढ़ अनुमंडल से 13 किलोमीटर पूरब पंडारक में पुण्यार्क सूर्य मंदिर स्थित है। छठ पर्व के अवसर पर पुण्यार्क सूर्य मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन एवं पूजा-पाठ करने आते है तथा आरोग्यता का वरदान पाते है। भारत में जितने भी साम्ब द्वारा स्थापित सूर्य मंदिर है, वहां पर शाकद्वीपी ब्राह्मण ही पूजा कराते हैं। यह घटना भी बिहार के नालंदा जिला के बड़गांव की है। इसलिए बड़गांव में आज भी बड़े ही धूमधाम से कार्तिक माह के शुक्लपक्ष के षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर दूर-दराज के लोग बड़गांव के सूर्य मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करतें है एवं पोखर में पानी मे खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। यही कारण है कि बिहार में लोगों के बीच इस पर्व का विशेष महत्व है। छठ पूजा के अवसर पर बाहर रहकर नौकरी-पेशा करने वाले बिहारी भाई वापस बिहार आ जातें है और छठ पूजा की शुरुआत करते हैं।आपको बतातें चले कि चारदिवसीय छठ पूजा का यह त्योहार बिल्कुल अनोखा अनुपम और अद्भुत है। इस अवसर पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। मन-तन और आस-पास का पर्यावरण तक बिल्कुल शुद्धता की चासनी में डूब जाता है। आज यह पर्व बिहार के अतिरिक्त पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार के सीमावर्ती इलाके, नेपाल, आदि जगहों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। चारदिवसीय छठ पूजा का जो क्रम है, वह नहाय खाय से प्रारंभ होकर खरना, अस्ताचल भगवान भास्कर को पहली अर्घ्य तथा उदित भगवान भास्कर को दूसरी अर्घ्य समर्पित करने के बाद यह व्रत सम्पन्न होता है। प्रकृति पूजा का यह महान पर्व में अस्त होते हुए सूर्य एवं उदित होते हुए सूर्य, दोनों रूपों की पूजा की जाती है। लोकगायकों ने षष्टि देवी मैया (छठ मैया) एवं सूर्य देव के लिए समर्पित कई गीत प्रचलित है। जो इस अवसर पर घर घर में बजाए और सुने जाने हैं। इन गीतों में छठ माँ एवं सूर्य देव की महिमा का बखान मिलता है। छठ पुजा के अवसर पर जगह-जगह श्रद्धालु भक्तों के द्वारा भगवान सूर्य की प्रतिमा की स्थापना की जाती है तथा पूजा-अर्चना की जाती है। सूर्य की प्रतिमा के दर्शन के लिए पहली अर्घ्य के संध्या बेला में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।