आलेख- कृष्ण देव पंडित
गांधी जी का बचपन सामान्य बच्चों की तरह था। उन्होंने अपनी आत्मकथा “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” में बचपन की कई बातों को उजागर किया है। गांधीजी की बचपन में वही सारी आदतें थी जो एक शरारती बच्चों में पाई जाती है। शरारत, मस्ती, चोरी ,मांस खाना एवं उसके बाद पश्चाताप, यानि तमाम प्रकार के निषेध कार्य उनके बचपन के जीवन के अंग थे ।गलियों में बाइस्कोप अपने साथियों के साथ देखा करते थे। एक बार उन्होंने बाइस्कोप में राजा हरिश्चंद्र की कहानी देखी राजा हरिश्चंद्र की कहानी देखने से उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन हुआ यह कहानी उन्हें बहुत प्रभावित किया ।और सत्य के प्रति इनका प्रेम बढ़ता गया। बचपन में गांधीजी ने राजा हरिश्चंद्र को अपना आदर्श मान लिया हरिश्चंद्र की कहानी से उन्हें पता चला कि जीवन में सत्य की कितनी अहम भूमिका होती है। सच्चाई के महत्व का एहसास होने के बाद उन्होंने अपनी गलतियों को एक पत्र के माध्यम से अपने पिता के समक्ष स्वीकार भी किया। अक्सर यह देखा जाता है कि हम बच्चों में गलती स्वीकारने की बात नहीं होती है। उसी प्रकार एक बार बालक मोहनदास ने घर में मना करने के बाद भी बकरे का मांस खा लिया, जिसके चलते रात भर उनके सपने में नन्हा बकरा आता रहा। इस सपने ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया और तब से उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया। इस प्रकार बालक मोहनदास सत्य और अहिंसा की सीख मिल गई थी । बचपन की कुछ गलतियों ने उनके दिलो-दिमाग को इस प्रकार प्रभावित किया जो उनके महात्मा बनने की नींव रख डाली।
गांधी जी के घर में एक कुआं था और उस कुएं के पास एक पेड़ लगा हुआ था। कुएं के चलते घर के बच्चों को पेड़ पर चढ़ने की मनाही थी। लेकिन शरारती मोहनदास को जब भी मौका मिलता दूसरों से नजर बचाकर पेड़ पर चढ़ जाते और मस्ती करते। एक बार उनके बड़े भाई ने उन्हें पेड़ पर चढ़ते देख लिया और नीचे उतरने को कहा गांधीजी नीचे नहीं उतारना चाहते थे और कहा की पेड़ पर उन्हें बहुत मजा आ रहा है बड़े भाई को गुस्सा आया और उन्होंने उनके गाल पर एक चांटा जड़ दिया। गांधीजी रोते हुए मां के पास गए और उन्होंने बड़े भाई की शिकायत कर उन्हें डांटने के लिए कहा । काम में व्यस्त मां पुतलीबाई ने तंग आकर कह दिया जा तू भी उसे जाकर मार ले। इस पर बालक मोहन दास ने कहा वह हमसे बड़े हैं, मैं उन पर हाथ कैसे उठा सकता हूं । आप ही ने तो सिखाया है कि बड़ों का हमेशा आदर करना चाहिए गांधी जी की इस बात को सुनकर मां का कलेजा पसीज गया और उन्हें अपने गले से लगा लिया। मां को भी अपनी भूल का एहसास हो गया था। उन्होंने अनीता करण से गांधी जी को आजीवन ईमानदारी और सच्चाई पर चलने का आशीर्वाद दिया।
गांधीजी को बचपन में बीड़ी पीने की लत लग गई थी। इसका कारण यह था कि उनके काका बीड़ी पीते थे और बीड़ी पी कर बचे हुए टुकड़े को जब फेंक देते थे। उस फेंकी हुई बीड़ी को चुपे चोरी गांधीजी पिया करते थे। बीड़ी पीने का शौक उन पर इस कदर परवान चढ़ा कि अपने घर के नौकर की जेब से पैसे चुरा कर बीड़ी खरीद कर पीने लगे। हालांकि बाद में उन्होंने बीड़ी पीने की लत से भी छुटकारा पा लिया था।
किसी ने सोचा नहीं होगा कि पूरी दुनिया को सत्य अहिंसा और निडरता का पाठ पढ़ाने वाले गांधी बचपन में इतने डरपोक और भीरु होंगे। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” में लिखा है कि उन्हें बचपन में भूतों से बहुत डर लगता था। एक बार की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि उन्होंने घर के दूसरे कमरे में जाना था लेकिन अंधेरा बहुत ज्यादा था इसलिए उन्हें भूतों का डर सता रहा था। उन्हें लग रहा था कि बहुत कहीं छुप कर बैठा होगा और कमरे से पैर निकालते ही उन्हें पकड़ लेगा । उन्होंने काँपते हुए पैर कमरे से जैसे ही बाहर निकाला तभी बाहर खड़ी बूढ़ी दाई रंभा ने देख लिया गांधी जी को डरे समय देखकर रंभा दाई ने पूछा की क्या बात है, गांधीजी ने बताया कि उन्हें अंधेरे में भूतों से बहुत डर लगता है । इस पर दाई रंभा ने उनसे कहा राम का नाम लो कोई भी भूत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा और वह हर वक्त तुम्हारी रक्षा करेंगे। तबसे गांधीजी की राम भक्ति जागृत हो गई और राम के प्रति उनकी आस्था अंतिम सांस तक बनी रही। गांधी जी का पसंदीदा भजन रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम था ।
गांधी जी की बचपन की सारी घटनाएं ये बतलाती है कि बचपन में मनुष्य गलती करता है और गलती के बिना शायद बचपन अधूरा है । लेकिन, उन गलतियों से जो सीख ले ले और भविष्य में न दोहराने का संकल्प ले ले तो वह व्यक्ति महान हो जाता है। गांधी जी में अपनी सारी गलतियों को स्वीकार करने की ताकत थी साथ ही उन गलतियों को जीवन मे उन्होंने कभी नहीं दोहराया। उन्होंने ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में इस संबंध में यह दर्शाने की कोशिश की है कि मानव स्वभाव वश गलतियों का पुतला होता है लेकिन गलतियों को दोहराया नहीं जाना चाहिए। गलतियों को सुधारने की कोशिश होनी चाहिए। अपनी गलतियों को सुधार कर लेने वाला व्यक्ति जीवन में अपने वास्तविक लक्ष्य और उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।