मातृभाषा दिवस पर विशेष
भाषा किसी भी देश और समाज के लिए विचारों की अभिव्यक्ति का बेहतरीन माध्यम है। आम लोगों में कई बार मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा के बीच अंतर समझने में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसका कारण है कि भारत में मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में काफी निकटता को लेकर ऐसी स्थिति बनती है। भारत में बहुसंख्यक लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं, जो कि उनकी मातृभाषा भी होती है। जबकि मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर है। मातृभाषा उसे कहते हैं, जिस भाषा को जन्म लेने के बाद मनुष्य प्रथम भाषा के रूप में इस्तेमाल करता है। जैसे:- हिन्दी से मिलती-जुलती भोजपुर में बोली जानी वाली भोजपूरी, मिथिला में बोली जाने वाली मैथिली, महाराष्ट्र में बोली जाने वाली मराठी, पंजाब में पंजाबी, बंगाल में बंगाली वहाँ के स्थानीय लोगों के लिए मातृभाषा है। इन सब के बीच एक ऐसी भाषा है, जो भारत के सभी लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करती है, वह है हिन्दी भाषा। हिन्दी भाषा के इसी गुण के कारण 14 सितम्बर 1949 को संवैधानिक स्तर पर राजभाषा (राष्ट्रभाषा) के रूप में मान्यता दी गई है। अत: राष्ट्रभाषा वह भाषा है जो राष्ट्र की बहुसंख्यक जनसंख्या के द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। यही कारण है कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में जाना जाता है।
भारत में सैंकड़ों प्रकार की मातृभाषाएं बोली जाती हैं, जो देश की विविधता और अनूठे संस्कृति को बयां करती है। वहीं भारत की राष्ट्रभाषा एक है और वह है हिन्दी । मातृभाषा किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक जीवन को आकार देती है और उसके प्रगति की नींव रखती है। भारत के उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडु ने 21 फरवरी को होने वाले मातृभाषा दिवस से जुड़े एक कार्यक्रम में कहा कि भारत यूनेस्को की तरह भाषायी सांस्कृतिक विविधता के महत्व को समझता है। उन्होंने आदिवासी भाषाओं के विलुप्त होने पर चिंता जाहिर करते हुए इनके संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मातृभाषा देश की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर को आगे बढ़ाती है। भारत के महान साहित्यकार भारतेन्द्र हरिशचन्द्र ने मातृभाषा के महत्व के बयाँ करते हुए लिखा है –
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज़ भाषा ज्ञान के, मिटत नाहि को सूल॥”
मातृभाषा का मकसद सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषिकता को बढ़ावा देना है। यही कारण है कि भारत के संविधान में 22 अधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी गयी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग अपने जन्म के बाद मातृभाषा के अलावा एक से अधिक भाषाओं को बोलते हैं क्योंकि जीवनकाल के दौरान अन्य भाषाओं को वह सीखते भी रहते हैं।
पहली बार भारत में भाषाई सर्वेक्षण 1894 से 1928 के दौरान कराई गई थी, जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। हालांकि इस सर्वेक्षण में काफी खामियां भी थी। 1991 में कराई गई भारत की जनगणना में भी व्याकरण की अलग संरचना के साथ भाषाई सर्वेक्षण किया गया था जिसमें 1576 सूचीबद्ध मातृभाषा एवं 1796 भाषिक विविधता को अन्य मातृभाषाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया था। 2011 की जनगणना के आधार पर 121 भाषाएं एवं 1369 मातृभाषाएं हैं। 2001 की जनगणना की तुलना में 2011 में हिन्दी को मातृभाषा बताने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2001 में जहां 43.03% लोगों ने हिन्दी को मातृभाषा बताया था वहीं 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 43.6% हो गयी। बांग्ला भाषा दूसरे नंबर की मातृभाषा बनी रही जबकि तेलुगु को पीछे छोड़कर मराठी तीसरे नंबर की मातृभाषा बन गई। मातृभाषा बोलने के मामले में गुजराती छठे स्थान पर है। 22 सूचिबद्ध भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोले जाने वाली भाषा है।
भारत दुनिया के अनूठे देशों में से एक है जहाँ भाषाओं में विविधता विरासत के रूप में कायम है, जो हमारी खूबसूरत सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना का आधार है परंतु दुःखद बात यह है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में लगभग 43 फीसदी भाषाएं लुप्त होने के कगार पर है। इसका प्रमुख कारण है कि शैक्षणिक क्षेत्रों में मातृभाषा के प्रयोग की अपेक्षा की गई है। महात्मा गांधी ने भी शिक्षा के संदर्भ में विद्यार्थी समाज के बीच मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कसे की बात कही थी, क्योंकि मातृभाषा के विकास से ही बहुमुखी विकास संभव है। भाषाओं के लुप्त होने से परंपराए, स्मृति सोंच अभिव्यक्ति के तरीके और मूल्यवान संसाधन भी लुप्त प्राय हो जाते हैं। हालांकि वैश्विक स्तर पर अब मातृभाषा की संरक्षण की बात की जा रही है। यही कारण है कि यूनेस्को ने 21 फरवरी 1991 को ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों के आंदोलन के बाद मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी जिसे 21 फरवरी 1999 से क्रियान्वित कर दिया गया।
इसका मुख्य उद्देश्य मातृभाषाओं को शिक्षा प्रणालियों एवं सार्वजनिक डोमेन में उचित स्थान दिलाना है।