अपने देश भारत के गौरवशाली अतीत को समेटे बिहार का हृदय कहा जाने वाला मैं उपेक्षित शहर बाढ़ हूं। मेरा जन्म तो भारत भूमि के साथ ही हुआ लेकिन नामकरण का इतिहास मुझे नहीं मालूम। मेरे नाम के बारे में कुछ किवदंतिया हैं। कुछ लोग कहते हैं जल से रक्षा करने वाली देवी बाराही, जिनकी वर्षों पुराना मंदिर उमानाथ गोसाई मठ में स्थित है, के द्वारा मेरी रक्षा की जाती थी, जिनके नाम पर मेरा नाम बाढ़ पड़ा। मेरे नाम के कई शुभ अर्थ हैं- बाढ़ का शाब्दिक अर्थ वृद्धि है यानी निरंतर तरक्की करने वाला स्थान। विशाखदत्त रचित मुद्राराक्षस में बाढ़ शब्द का प्रयोग यकीनन, निश्चय एवं अवश्य के लिए किया गया है। नाटक इत्यादि में अच्छा, तथास्तु और अत्यंत शुभ के लिए बाढ़ शब्द का प्रयोग देखा जा सकता है। मैं बिहार राज्य के पटना जिले में पटना से 70 किलोमीटर पूर्व में पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा नदी के तट पर स्थित हूं। मेरे उत्तरी भाग में दियारा का मैदान तथा दक्षिणी भाग में टाल क्षेत्र है। मेरी भूमि बहुत ही उपजाऊ है। खास जाति की बहुलता के कारण मुझे कुछ लोग मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से भी बुलाते हैं। मेरे यहां सभी जाति धर्म के लोग बिल्कुल शांतिपूर्ण वातावरण में भाई चारे के साथ रहते हैं। मुझे बाढ़ के लोगों पर गर्व है परंतु सियासत दानों ने मेरी जरा भी चिंता नहीं की। पहले मैं समृद्ध और स्वस्थ हुआ करती थी, अब लोग मुझे कमजोर कर रहे हैं। मैं बहुत दुखी हूं मैं सचमुच उपेक्षा का शिकार हो गई हूं।
मुझे सबसे पहले 1964 ईस्वी में अनुमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ। तब से लेकर आज तक मैं अनुमंडल ही हूं। पहले की अपेक्षा मेरे क्षेत्र की जनसंख्या भी बड़ी है। साथ ही पटना जिला का मैं सबसे पुराना और बड़ा अनुमंडल हूं। मेरा फैलाव बख्तियारपुर के बाहपुर से मराची के नवरंगा जलालपुर तक है जो लगभग 93 हेक्टेयर भूमि में है। मेरे यहां कुल 7 प्रखंड 14 थाना और 83 पंचायत है। मेरी वर्तमान जनसंख्या 1100000 है। मैं अपने लोगों के लिए बहुत चिंतित रहती हूं लेकिन अभी तक मेरा सुनने वाला कोई नहीं है। मेरे यहां एक भी स्टेडियम नहीं है जिसमें अंतर राज्य स्तर के टूर्नामेंट हो सके और मेरे बच्चे लाभान्वित हो सके।
हां मैं उपेक्षित शहर बाढ़ हूं जिसे 1964 के बाद सिर्फ धोखा ही मिला है। मेरी शक्ति को क्षीण की गई है। मैं पहले लोकसभा क्षेत्र हुआ करती थी। मैंने अपने यहां से कई सांसद भारत के संसद में दिया है। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार जी को पहली बार संसद में जाने का सौभाग्य मेरी ही पवित्र भूमि से मिला है। जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तब मेरे मन की अभिलाषा प्रबल हो गई कि अब मेरे लिए कुछ अच्छा होगा लेकिन यह क्या! पर वो तो जिला बनाने का किया हुआ वादा भी भूल गए। मेरे साथ बहुत साजिश रची गई, धोखा दिया गया, मुझे उपाधियां देकर धोखे से सियासत दानों के द्वारा छीन लिया जा रहा है। पहले तो मुझे जिला का दर्जा देकर एक दिन बाद ही मुझसे छीन लिया गया। हां आज भी मुझे याद है वह लम्हा 22 मार्च 1991 का जब मुझे अविभाजित बिहार का 51 वा जिला बनाए जाने की एक अधिसूचना जारी की गई थी। तदुपरांत 1 अप्रैल 1991 को पटना के तत्कालीन डीएम अरविंद प्रसाद ने ध्वजारोहण कर जिला का उद्घाटन किया था। तब मेरी खुशी दुगनी हो गई थी लेकिन तब जमकर सियासत होने लगी। मुझे जिला का दर्जा दिए जाने पर राजनीतिक गलियारों में बवाल मचने लगा। परिणाम यह हुआ कि मुझसे जिला का खिताब छीन लिया गया। मैं दुखी हो गई रोई क्योंकि एक बार फिर से मेरी उपेक्षा की गई। मेरा अपमान किया गया। संवेदनहीन सियासत करने वाले लोगों को तनिक भी पीड़ा नहीं हुई।
मेरी गोद में बसे लोगों द्वारा मुझे जिला बनाने की मांग 1970 से ही की जा रही है जो आज तक हो रही है। यह मेरे लिए दुखद है, पीड़ादायक है। मुझसे छोटे अनुमंडल एवं बाद में अस्तित्व में आए शहर को जिला बना दिया गया जबकि मैं जिला बनाए जाने की योग्यता धारण करती हूं। मेरे यहां कई स्कूल , कॉलेज, कोचिंग नर्सिंग होम्स , अस्पताल एनटीपीसी आदि हैं। मेरे यहां रेल तथा सड़क यातायात की समुचित व्यवस्था है। मेरे यहां स्थित एनटीपीसी विद्युत संयंत्र भारत का सबसे बड़ा विद्युत संयंत्र है। फिर भी मेरी सुध लेने की किसी ने जरूरत नहीं समझी। मुझे बार-बार उपेक्षित किया गया इसलिए मैं कहती हूं कि मैं उपेक्षित शहर बाढ़ हूं। मेरे बदन को खरोंचा गया और मेरे टुकड़े किए गये। मुझे कमजोर बनाने की साजिश की गई। जातीय गणित बैठाकर 15वीं लोकसभा चुनाव से नया परिसीमन लाया गया। मेरे लोकसभा क्षेत्र के अंतिम सांसद विजय कृष्ण साबित हुए। वर्ष 2004 में बाढ़ लोकसभा का अंतिम चुनाव हुआ। नालंदा जिला का 2 विधानसभा चंडी और हरनौत बाढ़ लोकसभा के ही अंग थे। अब मुझ से लोकसभा की शक्ति छीन ली गई। अब मेरे पास केवल विधानसभा की शक्ति रह गई है। मुझे हीन भावना से ग्रसित होने का डर सताता रहता है।

मेरा अतीत गौरवशाली रहा है। मुगल काल और ब्रिटिश के समय में एक प्रमुख व्यापारिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध थी और पटना और कोलकाता के बीच नदी मार्ग से होने वाले व्यापार का मध्यवर्ती शहर मेरे यहां से गुणवत्ता वाली चमेली के तेल, दलहन का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता था। मेरी धरती पर 1495 ईस्वी में सिकंदर लोदी की सेना और बंगाल की सेना द्वारा एक शांति संधि की गई थी। सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर 1666 ईस्वी में पूर्वी जिलों के अपने दौरे के दौरान मेरे यहां विश्राम के लिए रुके थे। तख्त हरमंदिर साहिब द्वारा मेरे यहां पीपल तल बलीपुर मोहल्ले में एक छोटा सा गुरुद्वारा भी स्थापित किया गया था। कई प्रसिद्ध मंदिर मस्जिद मजार स्थित हैं। बनारस की तरह मेरे गंगा नदी के तट पर कई मंदिर एवं घाट है। मेरे यहां उमानाथ मंदिर की तुलना बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर से की जाती है। तुलसीदास जी ने कहा है :
बाढ़ बनारस एक है, बसे गंग के तीर ।
उमानाथ के दर्शन से, कंचन होत शरीर।।
मेरे कहने का तात्पर्य है कि यदि बिहार सरकार ध्यान दे तो मेरे यहां पर्यटन उद्योग फल-फूल सकता है। उमानाथ धाम, गौरी शंकर मंदिर और अलखनाथ को देवघर की तरह विकसित कर सरकार अपने आय का स्रोत बना सकती है। लेकिन दुखद बात यह है कि मैं जिसके लिए प्रसिद्ध मानी जाती हूं उसकी हालत दयनीय है। हां मेरी उपेक्षा की गई है, गवाह है मेरे दक्षिणी हिस्से में फैला 400 वर्ग किलोमीटर में टाल क्षेत्र। जहां की उपजाऊ भूमि सोना उगलती है लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण यहां के किसान एक ही फसल उगा पाते हैं। वर्षों से इस क्षेत्र में नहर बनाने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगती है। बिहार में सरकार चाहे किसी की रही हो, मैंने हमेशा उपेक्षित महसूस किया है। हां मैं उपेक्षित शहर बाढ़ हूं, दुखी हूं। मैं वर्षो से उपेक्षित बाढ़ हूं। मेरी संस्कृति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी अनोखी है । यहां हिंदुओं के लिए जहां शिवालय हैं, राम जानकी मंदिर है , वहीं दूसरी ओर मस्जिद और बंदनी हकानि महान मुस्लिम संत का मजार भी है। एक ओर इसाईयों के लिए गिरिजाघर है तो दूसरी तरफ से सिक्खों के लिए गुरुद्वारा। सदियों से सर्व धर्म समभाव की भूमि है मेरी। यहां दुर्गा पूजा, होली दिवाली तथा लोक आस्था का महापर्व छठ बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है, तो उतनी ही धूमधाम से ईद, बकरीद और क्रिसमस डे भी मनाया जाता है। अद्भुत हूं मैं। फिर भी मैं उपेक्षा का शिकार रही। कब और कैसे मेरी दशा बदलेगी, अब ईश्वर ही जाने।

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