शीर्षक से आपको संशय में पड़ने की आवश्यकता नही। क्योंकि यह 100 फ़ीसदी सत्य है। जी हाँ! अपने ही देश के कुछ मानवरूपी गिद्धों द्वारा की जा रही है मौत की कालाबाज़ारी। जिन चीजों की कालाबाजारी करने से लोगों की मौत हो रही है, उसे मौत की कालाबाजारी ही कहा जा सकता है। कोरोना महामारी के इस दौर में जहां कोरोना मरीजों की जान बचायी जा सकती है, वहीं बड़े पैमाने पर नकली दवाओं और ऑक्सीजन के साथ-साथ एंबुलेंस की कालाबाजारी से भारतवर्ष की लाखों जिंदगियां तबाह हो चुकी है। यह कालाबाजारी बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात सहित दिल्ली आदि राज्यों में धड़ल्ले से चल रही है। डॉक्टरों की मानें तो कोरोना संक्रमित मरीज 99% ठीक हो सकते हैं। 1% मामलों में ही मरीजों की मौत हो जाती है। लेकिन कोरोना से काल-कलवित हुए अधिकांश मरीजों की जान सिर्फ ऑक्सीजन की कमी, इलाज में देरी और नकली दवाओं के इस्तेमाल करने से हुई प्रतीत होती है। कोरोना एक भयानक महामारी जरूर है लेकिन उतना भी नहीं जितना इसे सुविधाओं के अभाव ने पैनिक बना दिया है। हालांकि जब नकली दवाओं के कारोबार और ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने का सोशल मीडिया और समाचार मीडिया द्वारा भंडाफोड़ किया गया, तब जाकर सरकार हरकत में आई और इस बाबत अब कार्रवाई की जा रही है। अब सवाल ये उठता है कि उनका क्या जिनके घर का चिराग कोरोना के कारण ऑक्सीजन की कमी और नकली दवाओं के सेवन से समय से पहले ही बुझ गया और रोशनी से जगमगाते घरों में मौत का मातमी अंधेरा छा गया? क्या यह सरकारी तंत्र पर सवालिया निशान नहीं लगाता? यदि सरकार समय रहते कालाबाजारी को रोक सकती तो इतनी जिंदगियाँ बर्बाद नहीं होती! हां, कुछ की गंभीर मामलों में मौतें होती लेकिन इतनी नहीं होती जितनी संख्या में हुई है। भारत के लोगों में निराशा और हताशा फैलाने में इन मौत के सौदागरों का बहुत बड़ा हाथ है। प्रतिदिन समाचार और सोशल मीडिया के माध्यम से कोरोना से मरने वालों की तादाद से लोगों के दिलों-दिमाग पर दहशत का वातावरण छा गया। उन्हें यह डर सताने लगा कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद सिर्फ मौत ही हो जाती है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं होता। डर का वातावरण तैयार करने में भी इन दवा कंपनियों या कालाबाजारियों का हाथ हो सकता है। इसी कारण जैसे ही लोगों की कोरोना संक्रमित होने की रिपोर्ट आती थी, उनके परिजनों में अफरा-तफरी मच जाती थी। समाज में फैले मौत के दलाल ऐसे लोगों की तलाश में रहता और मिल जाने पर उसे अपना शिकार बना लेता। कोरोना से बीमार लोगों की जान बचाने के चक्कर में उसके परिजन आसानी से इनके चंगुल में फंस जाते और मनमाने दाम पर ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाइयां लेने को मजबूर हो जाते। अगर सरकार हॉस्पिटल में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध करा पाती तो शायद इन गिद्धों के चंगुल से यह लोग बच जाते। हम लोग मंदिर-मस्जिद के नाम पर कटने-मरने को तैयार हो जाते हैं लेकिन खराब व्यवस्था पर चुप्पी साध लेते हैं। यह भारत की जनता की कमजोरी ही है कि हमारे समाज में ऐसे संवेदनहीन, अमानवीय और कुकर्मी चेहरों को शरण दिया जाता है। जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने वाले चाहे कोई भी हो, चाहे वह विधायक हो, सांसद हो, दवा कंपनी हो, सरकारी कर्मचारी हो या कोई अन्य व्यक्ति; क्या मौत के ऐसे सौदागरों को बख़्श दिया जाना चाहिए? क्या ऐसे लोगों पर हत्या का मुकदमा चलाकर स्पीडी ट्रायल करके कम से कम उम्र कैद की सजा नहीं की जानी चाहिए? इस विषय पर समाज के सभी वर्गों के लोगों को विचार-मंथन करने की जरूरत है। निश्चित रूप से इसकी जांच होनी चाहिए और जो लोग भी दोषी पाए जाते हैं, उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। आम जनता को भी यह अधिकार है कि देश में फैली अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और अराजकता एवं बिगड़ते सिस्टम के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाएं। भारत सरकार को भी इस बाबत प्राथमिकता के आधार पर महामारी के दौर में देश में फैली जालिमी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कोई कड़ा कदम उठाने की जरूरत है।