भारतीय राजनीति में अपराधी प्रवृति वालें लोगों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। इसी संदर्भ में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जन प्रतिनिधियों की सूची वेबसाइट, सोशल मीडिया एवं राष्ट्रीय समाचार पत्रों में सार्वजनिक करने को कहा है। उन्होने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि ऐसे उम्मीदवारों को चयन करने के 72 घंटों के अंदर इस संदर्भ में चुनाव आयोग को सूचित करना होगा। यदि कोई राजनीतिक दल इन दिशानिर्देशों का अनुपालन करने में विफल रहता है तो उनके इस कृत्य को न्यायालय के निर्देशों की अवमानना माना जाएगा। चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलो पर कार्रवाई भी कर सकता है। विदित हो की पिछले कई वर्षो से राजनीति के क्षेत्र में अपराधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। न्यायालय में प्रस्तुत आंकड़ो के अनुसार वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित थे। 2009 में यह बढ़कर 30% हो गया जबकि 2019 के आम चुनाव से संसद मे आए कुल सदस्यों मे से 43% पर आपराधिक मामले दर्ज थे। 

राजनीति के अपराधीकरण की बढ़ती प्रवृति भारत मे लोकतंत्र के लिए घातक है। आपराधिक प्रवृति वालें लोग राजनीति में आकर अपने लाभ के लिए राजनीतिक शक्तियों का दुरुपयोग करने लगते है। 17वे लोकसभा चुनाव में विश्लेषण किए गए तथ्यों के आधार पर 539 विजेताओं मे से 233 सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए है। जिनमे से 29% सदस्यों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज है। भारतीय राजनीति में जन प्रतिनिधियों के चुनाव में पारदर्शिता और जनता के प्रति उनके उत्तरदायित्वों को पुनः रेखांकित करने के लिए लंबे समय से चुनावी तंत्र में सुधारों की मांग उठती रही है। समय-समय पर इनमे सुधार लाने के लिए विभिन्न समितियों एवं आयोगों का भी गठन किया गया है। इनमे दिनेश गोस्वामी समिति 1990, बोहरा समिति 1993, इंद्रजीत गुप्ता समिति 1998, विधि आयोग रिपोर्ट 1999, एम0एन0 वेंकट चलैया समिति 2002 तथा वांचू समिति आदि ने राजनीतिक दलों की गतिविधियों पे अपनी रिपोर्ट जारी की। 

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में राजनीतिक अपराधीकरण को नियंत्रित करने के लिए न्यायालय के आदेश को अनुपालन कराना आवश्यक समझा गया। इसके कई परिणाम भी देखने को मिलेंगे। सर्वप्रथम, इसका फायदा यह होगा कि चुनावी पारदर्शिता में वृद्धि होगी क्योंकि राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के लिए बाध्य किया जा सकेगा। ऐसा नही करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। दूसरा फायदा यह होगा कि राजनीतिक दलों पर नैतिक दबाव बढ़ेगा और ऐसे उम्मीदवारों के चयन से बचना चाहेंगे क्योंकि राजनीतिक दलों की छवि धूमिल होने का खतरा बना रहेगा। तीसरा फायदा यह होगा कि प्रत्याशियों के आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी जब सार्वजनिक कर दी जाएगी तो मतदाताओं के बीच राजनीतिक दलों एवं स्थानीय प्रत्याशियों के बारे में जागरूकता बढ़ेगी और बेहतर उम्मीदवार को चुन कर संसद या विधान सभा में भेजेंगे। 

परंतु न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कई चुनौतियाँ भी सामने आएगी। इसका कारण यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति में शामिल आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों पर प्रत्यक्ष कार्रवाई के बजाय यह निर्णय राजनीतिक दलों एवं जनता के विवेक पर छोड़ दिया है ऐसे में राजनीति में जल्दी बड़े बदलाव कि उम्मीद नही की जा सकती है। दूसरी चुनौतियाँ यह है कि आदेश में यह कहा गया है कि चुनाव आयोग को आपराधिक पृष्ठभूमि वालें व्यक्तियों पर कार्रवाई के स्थान पर उसकी निगरानी की जाये और न्यायालय को सूचित किया जाये। यह व्यवस्था राजनीतिक अपराधियों को लेकर पहले से ही लंबी न्यायिक प्रक्रिया पर समाधान प्रदान करने के बजाय उसे और जटिल बनाती है। अतः न्यायालय के आदेश से राजनीति में बड़े सुधारों की उम्मीद नही की जा सकती। 

राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए स्पष्ट एवं कड़े नियम निर्धारित किए जाने चाहिए। राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों पर नियंत्रण में सबसे महत्वपूर्ण योगदान राजनीतिक दलों एवं जनता का है क्योंकि राजनीतिक दल और जनता ही उम्मीदवारों को चयन करते है। ऐसी स्थिति में जनता का जागरूक होना बहुत ही जरूरी है। उनमे यह समझ विकसित होनी चाहिए की वह ऐसे लोगों को अपना मतदान न करें। जनता को अपने उत्तरदायित्वो को अनुपालन भली-भाती करनी चाहिए। उसे किसी लालच या पूर्वाग्रह मे आकर प्रतिनिधियों का चुनाव नहीं करके योग्यता के आधार पर करें। जमीनी स्टार पर कार्य करने वाले अधिकारियों को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा जाना चाहिए ताकि वे अपना कार्य स्वतंत्रतापूर्वक सम्पन्न कर सकें। माफिया संगठनो की गतिविधियों के बारे में सूचना एकत्र करने के लिए एक नोडल एजेंसी का निर्माण किया जाना चाहिए। राजनीतिक अपराधीकरण विधि व्यवस्था की समस्या को पैदा करने के साथ लोकतन्त्र को हानि पहुंचाता है। ऐसे लोग सिर्फ अपने लाभ के लिए कानून का खुलेआम उल्लंघन करके उसका दुरुपयोग करता है।यदि भारतीय लोकतंत्र को स्वच्छ बनाना है तथा भारत को एक विकसित देश की श्रेणी मे खड़ा करना है तो अपराधिक प्रवृति वाले उम्मीदवारों पर रोक लगाना आवश्यक है। 

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