वर्तमान समय में विश्व के प्रायः कई देशों ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अपनाने पर ज़ोर दिया है। वैश्वीकरण का मतलब राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक आदि मामलों में पूरे विश्व के देश ,मिलजुल कर एक मंच पर कार्य करने से है। दूसरे शब्दों मे कहे तो वैश्वीकरण का तात्पर्य सामाजिक आर्थिक संबंधो के वैश्विक विस्तार एवं विभिन्न देशों के बीच बढ़ती परस्पर निर्भरता से है।
वैश्वीकरण शब्द का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के संदर्भ मे किया जाता है। आर्थिक शक्तियाँ वैश्वीकरण का एक अभिन्न अंग है। लेकिन फिर भी यदि देखा जाए तो वैश्वीकरण सामान्यतः आर्थिक, प्रौद्योगिकी, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं जैविक कारकों से प्रेरित रहती है। और यही कारण है कि यह समाज को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है। आर्थिक वैश्वीकरण से जहां विश्व के देशों के बीच व्यापार करना आसान हुआ है, व्यापार के खुलेपन की नीति का आगाज हुआ है वही दूसरी तरफ पूंजीवाद ने अपना पैर पसारना शुरू कर दिया। यह सत्य है कि पूंजीवाद विकसित और संसाधन युक्त देशों के लिए वरदान के रूप मे कार्य करता है वही दूसरी ओर विकासशील देशों, अल्पविकसित देशों तथा तकनीकी अभावग्रस्त देशों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। यही कारण है कि विकासशील देशों में कई तरह की सामाजिक बुराइयाँ और आर्थिक चुनौतियाँ जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। गरीब और अमीर के बीच असामानता की खाई बढ़ती चली जाती है। मात्र 20% धनी व्यक्ति विश्व की 86% धन का उपयोग यानि व्यय करते हैं।
विकसित देशों का मशीनीकरण एक बहुत बड़ी जनसंख्या को बेरोजगारी की स्थिति में लाकर खड़ा कर देते है। एक ओर उन्नत पूंजीवादी राष्ट्र जहा औद्योगिकीकरण का लाभ का आनंद उठाते है वही दूसरी तरफ विकासशील राष्ट्र औद्योगिक गतिविधियो द्वारा उपजे नकारात्मक परिणामों को भुगतने के लिए विवश रहते है।
वैश्वीकरण के कारण उपभोक्तावाद की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है क्योंकि विकासशील देशों मे लोगों मे नकल करने की प्रवृति पायी जाती है। तेज़ी से बदलते फैशन और भौतिकवादी संस्कृति के पनपने के चलते कम लागत पर तेज़ी से उत्पादन होता है जिसका बुरा प्रभाव नैतिक मुद्दों पर पड़ता है। यह उन श्रमिकों के लिए संकट उत्पन्न करता है। जो अत्यधिक गरीब होते है। उन्हे अस्वस्थ परिस्थितियों में भी लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है जिससे उनका शारीरिक शोषण होता है। ऐसे श्रमिकों में खास कर आप्रवासी युवा, महिलाएं एवं बच्चे होते है। उद्योगों में सम्मिलित अस्वस्थ कार्य वातावरण और कम वेतन मिलने से श्रमिकों को मूलभूत मानवाधिकारों के प्रयोग से रोकते है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप आर्थिक शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि होती है जो अक्सर प्रवासियों के अधिकारों के उल्लंघन मे वृद्धि करता है। वैश्वीकरण में चूंकि पूंजीवाद की प्रधानता होती है अतः मशीनीकरण के कारण पर्यावरणीय ह्रास भी होता है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के कारण जैव विविधता एवं आवासन की हानि आदि पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को संकट में डाल देता है। वैश्वीकरण से न सिर्फ आध्यात्मिक व्यवधान में वृद्धि होती है बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी व्यवधान डालती है। परिवारों एवं समुदायों का विघटन, एकल परिवारों में वृद्धि और वृद्ध माता-पिता के प्रति बढ़ता अलगाव संचालित भौतिकवाद के वैश्विक प्रसार का ही परिणाम है। व्यापारिक दृष्टिकोण से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच मुक्त व्यापार गरीब और विकासशील देशों के ऊपर ऋणात्मक प्रभाव डालता है। गरीब देश का मुख्य निर्यात आम तौर पर कृषि से संबंधित वस्तुओं का होता है इसलिए निर्यात से विकसित देशों की तुलना में इन देशों को आय के रूप में विदेशी मुद्रा बहुत ही कम प्राप्त हो पाती है। मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ इनका प्रतिस्पर्धा कर पाना मुश्किल होता है। क्योंकि इस प्रकार के देश अपने किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करते है।