आज 60 के करीब पहुंच रहा ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिसके नास्टेल्जिया में तबस्सुम का गोल गदबदा सजा संवरा चेहरा, खनकती हुई हंसी और आत्मीय आवाज नहीं हो। देश में टेलीविजन को लोकप्रिय बनाने में कहीं न कहीं उनके आकर्षक व्यक्तित्व की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। तबस्सुम का जन्म 9 जुलाई 1944 को मुंबई में हुआ था और 18 नवंबर 2022 को उनका निधन हो गया। उनका मूल नाम किरण बाला सचदेव था।
ऐसे बहुत कम कलाकार होते हैं, जो अपने नहीं होने के बाद भी अपने प्रशंसकों को निराश नहीं करना चाहते। कहते हैं देवआनंद और फिर राजकुमार ने अंतिम दिनों में अपने परिजनों को हिदायत दे रखी थी कि वे मृत्यु के बाद उनके चेहरे को अपने प्रशंसकों के सामने नहीं आने देंगे। निश्चित रुप से उनकी इच्छा रही होगी कि उनके दर्शक उन्हें उसी रुप में याद करते रहें, जिस रुप में उन्हें पसंद करते थे।
आश्चर्य नहीं कि जिनकी पहचान ही उनकी खनकती हंसी से थी, उन तबस्सुम के निधन की सूचना भी हम तक उनके अंतिम संस्कार के बाद पहुंची। आज 60 के करीब पहुंच रहा ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिसके नास्टेल्जिया में तबस्सुम का गोल गदबदा सजा संवरा चेहरा, खनकती हुई हंसी और आत्मीय आवाज नहीं हो। देश में टेलीविजन को लोकप्रिय बनाने में कहीं न कहीं उनके आकर्षक व्यक्तित्व की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। टेलीविजन के आरंभिक दिनों में इनका टाक शो ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ अपने जीवंत और रोचक सवालों के कारण 21 सालों तक लोकप्रियता के शिखर पर रहे।
वास्तव में तबस्सुम को पहचान बाल कलाकार के रुप में ही मिली, जिससे वे आजीवन मुक्त नहीं हो सकीं। बेबी तबस्सुम उनके नाम के साथ कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि बुजुर्ग होने पर भी बेबी ही कहा जाता रहा। वास्तव में तबस्सुम नाम उनके पिता का प्यार से दिया नाम था, जिसे आजीवन उन्होंने सरमाथे लगाए रखा। उनका मूल नाम किरण बाला सचदेव था, जो सिर्फ कागजों में दर्ज रह गया। इनकी प्रतिभा और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण काफी छोटी उम्र से इन्हें बड़े परदे पर बडी भूमिकाएं मिलने लगीं। 1947 में इन्हें फिल्म ‘नरगिस’ में बाल कलाकार की भूमिका मिली। फिर इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा 1951 में ‘दीदार’ में नरगिस के बचपन की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन पर फिल्माया गीत ‘बचपन के दिन भुला न देना, आज हंसे कल रुला न देना’…आज भी याद किया जाता है।
विजय भट्ट की कालजयी फिल्म ‘बैजू बावरा’ में इन्होंने मीना कुमारी के बचपन की भूमिका को अमर कर दिया था। ये वह दौर था जब बेबी तबस्सुम का नाम पोस्टर पर प्रमुखता से दिया जाता था, दर्शक उनके लिए सिनेमा घर तक आते थे। तबस्सुम के लिए अपने प्रशंसक सबसे महत्वपूर्ण रहे। बड़े परदे पर जब अवसर कम होने लगे तो उन्होंने अपने को दूरदर्शन जैसे नए माध्यम के लिए तैयार किया, और शुष्क से दूरदर्शन को ग्लैमर ही नहीं, अपनी आत्मीयता से भी नई पहचान दी। कहते हैं 70 के दौर में तबस्सुम के कार्यक्रम में आना किसी भी कलाकार के लिए गौरव की बात होती थी।
इनके कार्यक्रमों की जीवंतता के कारण ही कई बड़े कलाकार अपने वैश्विक स्टेज शो के लिए इन्हें ले जाने को प्रथमिकता देते थे। तबस्सुम ऐसी कलाकार रहीं, जिन्होंने एंटरटेनमेंट के लगभग हर फॉर्मेट में उतनी ही कुशलता के साथ काम किया। 1985 में इन्होंने एक फीचर फिल्म ‘तुम पर हम कुर्बान’ का निर्माण और निर्देशन भी किया। तबस्सुम की खनकती हंसी बस यादों में रह जाएगी। उनका जाना दूरदर्शन के सुनहरे दौर का जाना है। नमन, तबस्सुम..आपकी अंतिम इच्छा के अनुरुप हम आपकी मुस्कुराहट ही स्मृतियों में बनाए रखेंगे।
मां की आखिरी इच्छा थी कि…
तबस्सुम के बेटे होशांग गोविल ने कहा कि उनकी मां की इच्छा थी कि अंतिम संस्कार से पहले किसी को भी उनकी मौत की खबर न दी जाए। होशांग ने बताया कि कुछ दिनों पहले उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें गैस्ट्रो की दिक्कत थी और हम वहां चेकअप के लिए गए थे। उन्हें शुक्रवार रात को दो बार दिल का दौरा पड़ा। शनिवार को मुंबई में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।