आजकल फेक न्यूज़ काफी प्रचलन में है और इसका प्रसार प्रचार भी तेजी से हो रहा है। फेक न्यूज़ न सिर्फ लोगों को गुमराह करने का काम करता है बल्कि उन्हें वास्तविकता और सच्चाई से भटकाने का भी काम कर रहा है। राजनीतिक पार्टीयों के आई टी सेल के द्वारा ऐसी सामग्री हर दिन जनता के बीच परोसी जा रही है। यह भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। आखिर क्या होता है फेक न्यूज़? वैसे समाचार, सूचनाएं या कहानियां जो झूठ और मनगढंत बातों पर आधारित होता है फेक न्यूज़ की श्रेणी में आता है। मूलतः इनका प्रचार और प्रसार फ़ेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग्स, वेव साइट्स या ऐसे ही मीडिया प्लेटफार्मों के जरिये किया जाता है। फेक न्यूज़ इस प्रकार से बनाया ही जाता है कि लोग इस पर आँख मूंद कर विश्वास कर ले। इन दिनों सोशल मीडिया के प्रत्येक प्लेटफार्मों पर फेक न्यूज़ का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है।
क्या है उद्देश्य? फेक न्यूज़ बनाने या बनवाने वाले का मुख्य उद्देश्य जनता को अपनी ओर रिझाना या किसी विरोधी के खिलाफ नफरत पैदा करना या समाज के लोगों को दिग्भ्रमित कर अपना काम निकलना है। फेक न्यूज़ से ज़्यादातर वैसे लोग प्रभावित हो जाते हैं जो कम पढ़े लिखे होते हैं या फिर वैसे लोग जिन्हें अमुक विषय वस्तु का ज्ञान नहीं होता है जिस विषय वस्तु पर झूठ प्रचारित किया जा रहा होता है।
मैसेजिंग प्लेटफार्म इन झूठी सूचनाओं या समाचारों का वाहक के रूप में कार्य करते हैं। झूठी ख़बर या सूचनाओं को प्रचारित करने वाले सोशल मीडिया यूजर्स इसलिए सफल हो जाते हैं चूंकि मैसेज के रूप में प्रसारित ये सूचनाएं एन्क्रिप्टेड स्वरूप में होती है, इसलिए इनकी पहचान कर पाना मुश्किल होता है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म सूचना, सुरक्षा तथा निजता के लिहाज से इनका डिकोडिंग करने से इनकार करते हैं। यदि यूजर्स द्वारा भेजी जानेवाली सूचनाओं को ट्रेस किया जाता है अथवा उन्हें बीच मे ही डिकोड करने का प्रयास किया जाता है तो इससे उपभोक्ताओं की गोपनीयता का हनन होगा, साथ ही साइबर सुरक्षा भी कमजोर होगी।
चूंकि अब व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता भारत से बाहर के देशों में रह रहे लोगों से बातचीत करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं अतः इन्हें ट्रेस अथवा डिकोड किया जा सकता है और यह क्षेत्राधिकार के मुद्दे में भी शामिल हो सकता है। हाँलाकि इस प्रकार के फेक न्यूज़ को पकड़ने के लिए कुछ प्रणालियां भी विकसित की गई है जिनमें मेटाफ़ैक्ट एवं अल्गोरिदम आधारित प्रणाली प्रमुख है। मेटाफ़ैक्ट का विकास वर्ष 2017 में किया गया था। यह एक एआई आधारित चाटबॉट है जो वास्तविक समय में फेक सूचनाओं की हर की पहचान करने तथा उनको मॉनिटरिंग करने में सक्षम होता है एल्गोरिदम आधारित प्रणाली का विकास करने की घोषणा हाल ही में अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है यह फेक न्यूज़ की पहचान करने में सक्षम बताया जाता है शोधकर्ताओं की माने तो यह प्रणाली मानव की तुलना में 6% अधिक सटीकता से फेक सूचनाओं की पहचान कर सकते हैं।
फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिए अधिक सतर्कता और निगरानी की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार द्वारा संस्थागत रूप से जिला कस्बा एवं ग्रामीण स्तर पर आम लोगों को इंटरनेट संबंधी शिक्षा दी जानी चाहिए। नहीं तो फेक न्यूज़ के मकड़जाल में पड़कर वास्तविकता और सच्चाई से लोग दूर होते चले जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक सिद्ध नहीं हो इसके लिए लोगों को फेक न्यूज़ की पहचान और निदान के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से की गई कोई भी कार्यवाही किसी भी नागरिक के बोलने अथवा उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित नहीं करती हो।

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