भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की रिपोर्ट की मानें तो 1930 के दशक की वैश्विक महामंदी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था सबसे खराब दौर से गुजर रही है। IMF ने 2020 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 1.9 रहने का अनुमान लगाया था जो कि वर्तमान दौर में सच साबित हुआ। इसकी एक वजह कोरोना जैसी वैश्विक महामारी भी है। हालांकि 2020 में दुनिया भर के देशों में आर्थिक वृद्धि दर कमजोर हुई है परंतु भारत और विश्व के अन्य देशों में अंतर यह है कि विश्व के कई देशों में स्थिति अब तेजी से सुधर रही है जबकि भारत में यह बिल्कुल बिगड़ती जा रही है। इसकी एक और वजह है कि भारत सरकार ने नोटबंदी और GST लागू करने जैसे कई बड़े कदम उठाए हैं। हो सकता है इसका दीर्घकालीन परिणाम अच्छा निकले। लॉकडाउन की वजह से ज्यादा आर्थिक नुकसान उन क्षेत्रों को हुआ है जिसे आवश्यक माना गया है जैसे खनन कृषि विनिर्माण आदि।
भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछड़ने का एक प्रबल कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP (gross domestic product) का गिरना है।भारत के GDP में लॉकडाउन के शुरुआती दौर में काफी गिरावट आई है और यह केंद्र सरकार की सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020 – 21 के वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल से जून तक में -23.9% हो गई है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान था कि यह भारत की भारत का जीडीपी दर 16.5% तक गिर सकती है लेकिन जो आंकड़े आए वह सब कुछ चौंकाने वाले थे। जीडीपी में गिरावट की सबसे बड़ी वजह सभी प्रमुख सेक्टर में ग्रोथ निगेटिव रही। कंस्ट्रक्शन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का बुरा हाल था रिसर्च और रेटिंग्स फॉर मी अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहना है कि जीडीपी ठीक वैसे ही है जैसे किसी छात्र का मार्कशीट। जैसे किसी छात्र का मार्कशीट बतलाता है कि छात्र का प्रदर्शन कैसा है उसी तरह से GDP किसी देश के अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को बतलाता है।
किसी देश की राजनैतिक सीमा के अंदर निर्धारित समय में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को जीडीपी कहा जाता है। जीडीपी से ही पता चलता है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है। अगर जीडीपी ज्यादा है तो हालत अच्छी मानी जाएगी, अगर जीडीपी कम है तो अर्थव्यवस्था की हालत खराब मानी जाएगी।
भारत की अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय भी विकास का एक पैमाना है। आइये पहले समझते है कि राष्ट्रीय आय में किन किन क्षेत्रों का कितना योगदान है। राष्ट्रीय आय में योगदान की दृष्टि से विभिन्न क्षेत्रो को तीन भागों में बांटा गया है-
- प्राथमिक क्षेत्र- जिसने कृषि पशुपालन, खनन, वानिकी से प्राप्त आय को जोड़ा जाता है। भारत में लॉकडाउन स्थिति में इन सभी क्षेत्रों में आय पर बुरा असर पड़ा। प्राथमिक क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय आय में 17% है जो अपना स्वाभाविक योगदान नहीं दे सका। इस क्षेत्र में भी रोजगार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। बेरोजगारी बढ़ी।
द्वितीयक क्षेत्र – जिसमें विनिर्माण, विद्युत और उद्योग के क्षेत्र आते हैं। नोटबंदी ने विनिर्माण और उद्योगों की कमर तोड़ दी। कई लघु एवं कुटीर एवं मध्यम मध्यम दर्जे के उद्योग बीमार अवस्था में चले गए एवं कुछ तो बिल्कुल बंद हो गए। ऐसी स्थिति में लाखों बेरोजगार हो गए, उनकी आय घट गई। विदित हो कि द्वितीयक क्षेत्रों का राष्ट्रीय आय में योगदान 29% है। जैसे जैसे लोग बेरोजगार होते गए बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की मांग घट गए उत्पादन सीमित हो गया पालन सीमित हो गया और इस तरह यह क्षेत्र भी राष्ट्रीय आय में अपना वास्तविक योगदान नहीं दे सका।
तृतीयक क्षेत्र – भारतीय राष्ट्रीय आय का सबसे महत्वपूर्ण भाग है जिसका योगदान सबसे ज्यादा 53.5% है। लॉकडाउन की स्थिति में सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव का शिकार रहा। इस क्षेत्र में सेवा, परिवहन, चिकित्सा, शिक्षा, बैंकिंग, बीमा और रेलवे को रखा गया है। नोटबंदी से उत्पन्न संकट से अभी भारत उभरा भी नहीं था कि लॉकडाउन ने इसकी दुर्दशा कर दी। सेवा क्षेत्र, परिवहन क्षेत्र, शिक्षण संस्थानों, रेलवे आदि का परिचालन ठप हो गया है अतः राष्ट्रीय आय भी प्रभावित हुई। यद्यपि भारत सरकार ने अपने प्रयासों से इसकी कमियों को दूर करने का आंशिक प्रयास भी किया। सरकार द्वारा उठाए गए कड़े कदमों से जो सबसे विकट समस्या उत्पन्न हुई वह है बेरोजगारी। बेरोजगारी के कारण अर्थव्यवस्था में जितनी मांग होनी चाहिए वह बहुत कम है। निर्यात घटा है और निजी क्षेत्रों में निवेश में कमी आई है। आर्थिक वृद्धि दर घटने की एक प्रमुख वजह है। रोजगार सृजन का सीधा संबंध आर्थिक विकास से है। जैसे-जैसे GDP बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा। इकोरैप (Ecowrap) नाम की एस.बी.आई के रिपोर्ट के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष 2019-2020 में नई नौकरियों के अवसर में कमी आई है। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (CMIE) की फरवरी 2020 की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी दर बढ़कर 7.78% हो गई है। यह आंकड़ा कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन होने के पहले का है। यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि लॉकडाउन की स्थिति में बेरोजगारी दर और ज्यादा वृद्धि हुई है। जुलाई 2020 की CMIE की रिपोर्ट बताती है कि शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा 9.15 थी। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में रोजगार सृजन का बहुत बड़ी भूमिका है। क्योंकि रोजगार है तो आय हैं, आय हैं तो वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग है, मांग हेतु उत्पादन, उत्पादन हेतु रोजगार सृजन है और रोजगार होगा तो सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में वृद्धि होगी ही। फलस्वरूप आर्थिक विकास दर तेज़ होगा।
वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कहा है कि साल 2021 में भारत उभरती अर्थव्यवस्था वाले बाजारों में सबसे अधिक कर्ज बोझ वाली अर्थव्यवस्था में शामिल हो सकता है। हालांकि भारत सरकार ने गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जनता पर तरह-तरह के सर्विस टैक्स लगाए। टैक्स में वृद्धि की गई, पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाए परंतु अब तक किया है एक प्रयोग ही साबित हुआ है। IMF की रिपोर्ट की मानें तो आने वाले कुछ वर्षों में भारतीय तेजी से आर्थिक ग्रोथ करने वाले देशों में शामिल होगा।