किसी भी सभ्य समाज की स्थिति उस समाज में स्त्रियों की दशा और व्यवहार को देखकर ज्ञात की जा सकती है। महिलाओं के व्यवहार और दशा में समय-समय पर देशकाल के अनुसार परिवर्तन होता रहा है। समय के साथ-साथ भारतीय समाज में महिलाओं की दशा में परिवर्तन हुआ है। सैंकड़ों वर्षो से परतंत्रता की बेड़ी में बंधी महिलाओं की दशा में अब सुधार हो रहा है। धीरे-धीरे महिलाएं वास्तविक स्वतन्त्रता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहीं है। भारतीय समाज की परंपरागत व्यवस्था से अलग हटके महिलाएं अपनी स्थिति में बदलाओ कर रही है। इसका एक प्रमुख कारण पुरुषों की सोच में महिलाओ के प्रति बदलाव का भी है। प्राचीन काल में स्त्रियों को केवल घर की चारदीवारी की ही शोभा मानी जाती थी, उन्हे सिर्फ संतति उत्पन्न करने की वस्तु समझा जाता था, लेकिन पुरुष वर्ग ने अपनी सोच बदली और महिलाओं को उसके वास्तविक अधिकार के प्रति सजग भी किया है। 

भारतीय महिला अपने गृह कार्यों एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए समाज और देश में अपनी महत्वपूर्ण योगदान देना प्रारम्भ कर चुकी है। आज भारत की महिलाएं सामाजिक कार्यकर्ता, प्रशाश्निक पदाधिकारी, बैंक कर्मी, शिक्षक, वैज्ञानिक एवं राजनीतिज्ञ के रूप में बखूबी कार्य कर रही है। इसका सबसे प्रमुख कारण है शिक्षा का स्तर। धीरे-धीरे महिलाओं में शिक्षा का प्रसार हो रहा है। अब वह स्कूल-कॉलेज में पढ़ने जाया करती है। इसमे सरकार का भी बहुत बड़ा योगदान है। शिक्षा के प्रति महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है। महिलाओं के शिक्षा पर बल देते हुए विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948) के ये ऐतिहासिक शब्द ध्यान देने योग्य है। शिक्षित स्त्री के बिना शिक्षित पुरुष हो ही नही सकता। यदि पुरुषों और स्त्रियों मे से केवल किसी एक के लिए सामान्य शिक्षा का प्रावधान करना हो यह अवसर स्त्रियों को दिया जाना चाहिए। 

सन 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वनस्थली विद्यापीठ में भाषण देते हुए कहा था, “लड़के की शिक्षा केवल एक व्यक्ति की शिक्षा है। लेकिन एक लड़की की शिक्षा सम्पूर्ण परिवार की शिक्षा है।”

 महिलाओं में अद्वितीय समता पायी जाती है। इन्होने भक्ति,साहित्य, राजनीति, विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा और सेना के क्षेत्र मे जाकर अपनी अद्भुत प्रतिभा का अनोखा परिचय दिया है। 

वर्तमान दौर में महिला अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति खासा जागरूक हुई है। राशन कार्ड, आधार कार्ड से लेकर विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्र बनाने हेतु घर से निकलकर निर्माण स्थल तक पहुँचने लगी है। यह बदलाव शहर की महिलाओं के साथ-साथ गाँव में रहने वाली अनपढ़ महिलाओं में भी देखने को मिलता है। पंचायत स्तर से लेकर प्रखण्ड स्तर तक की महिलाओं मे आया यह परिवर्तन एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करती है। गरीब महिलाएं वंचित और शोषित समाज का एक हिस्सा मानी जाती थी लेकिन अब उनमें आगे बढ़ने का साहस एवं जज्बा देखा जा रहा है। पहले की अपेक्षा महिलाएं अब ज्यादा स्वतंत्र हुई है। महिलाएं जितना मनोयोग से अपने गृहकार्यों को पूरा करती है, उतने ही लगन से सामाजिक कार्यों में भी अपनी मौजूदगी का एहसास करा रही है। पहले महिलाएं किसी भी प्रकार के सामाजिक या सांस्कृतिक निर्णय लेने से वंचित रहती थी, अब वह खुद निर्णय लेने के योग्य बन चुकी है। 

महिलाओं में बदलाव एवं जागृति तेज़ी से आ रही है इसे नकारा नही जा सकता लेकिन इन बदलावों के पीछे कई कठिनाइयाँ एवं समस्याएँ भी है। पितृ सतात्मक एवं पुरुष प्रधान भारतीय समाज में आज भी महिलाओं को कई क्षेत्रों में उचित सम्मान नही मिल पाया है। घर से लेकर कार्यालय तक महिलाओं को कई तरह के वेदनाओ से गुजरना पड़ता है। मी टू कार्यक्रम के तहत कई महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया है- भारत में आए दिन महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा, बलात्कार, छेड़खानी आदि अपराध उनके आगे बढ़ने के रास्ते में बहुत बड़ी समस्या एवं बाधा है। थॉमसन रायटर्स फ़ाउंडेशन द्वारा किए गए एकल सर्वेक्षण में भारत को G-20 देशों में सबसे खराब देश कहा गया है। हालांकि भारत सरकार ने इसे खारिज कर दिया। NCRB के 2012 के एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के साथ कुल 244270 आपराधिक मामले आए जिसमे प्रति 100000 पर 24923 बलात्कार, 8233 दहेज संबंधी हत्याएँ तथा 106527 छेड़खानी की घटनाएँ शामिल है। राष्ट्रिय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 36% विवाहित महिलाएं घरेलु हिंसा के शिकार हैं। 

इस प्रकार महिलाओं के साथ बढ़ते अपराध ने आम मध्यम वर्गीय एवं गाँव में रहनेवाली महिलाओं के मन में एक डर पैदा कर देता है। ज़्यादातर महिलायेँ सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने के डर से अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज नही उठा पाती है लेकिन अब शिक्षा तथा जागरूकता के कारण कुछ महिलाएं ही ऐसा कर पाती है। महिलाओं के स्वतन्त्रता के मार्ग में बाधा है। यह दुःखद है की समय के साथ-साथ महिलाओं के साथ हो रहे आपराधिक घटनाएँ कम होने के बजाय तेज़ी से बढ़ते जा रही है। NCRB ने 2020 में जो आंकड़े दिये है वे बताते है की महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में 7% की वृद्धि हुई है। महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में देश भर में महिलाओं के साथ रेप के कुल 38947 मामले आये। मतलब हर रोज औसतन 107 महिलाएं रेप का शिकार हुई जबकि 2014 में यह औसत 90 के करीब था। 2013 में भारत में बलात्कार की घटनाओं की संख्या बढ़कर 33707 हो गयी जो 2012 में 24923 थी। आंकड़ो के मुताबिक 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 338954 मामलें सामने आयें। इसका मतलब यह हुआ की देशभर में रोज औसतन 928 महिलाएँ किसी न किसी अपराध का शिकार हुई। में दर्ज बलात्कार के मामलों के निम्नांकित ग्राफ:

POCSO कानून के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या 2016 में बढ़कर 35980 हो गयी।मामलों को प्रकाश में आने के बावजूद जो ट्राइल की गति है वो काफी धीमी है। कुछ ही महिलाओं के पक्ष में सुनवाई हो पाती है।  निम्नांकित ग्राफ से यह पता लगाया जा सकता है कि महिलाओं के आपराधिक मामलों में 12 से 20 फीसदी की ही सुनवाई हो पाती है:

यह आश्चर्यजनक है कि इन सब घटनाओ के बावजूद महिलाओं में बदलाव आया है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि अब महिलाएं अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक हो चुकी है। अब वो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने शुरू कर दिये है। परिस्थितियों से समझौता करने के बजाय महिलाएं उसका सामना करने के लिए साहस जूटा रही है। इस बावत सरकार भी काफी सक्रिय भूमिका निभा रही है। महिला सशक्तिकरण और ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

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